Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 714
________________ 648... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन करके श्रावक का सम्यक्त्वव्रत दूषित नहीं होता, परन्तु यदि परमात्मा से भी अधिक इनको प्रमुखता दी जाए अथवा मात्र इन्हीं की आराधना की जाए तो यह सर्वथा अनुचित है। वर्तमान में भोमियाजी, भैरूजी, मणिभद्रवीर, पद्मावती देवी आदि के प्रति लोगों की श्रद्धा स्वार्थ वृत्ति के कारण अतिरेक को पार कर रही है। कई लोग ऐसे हैं जो तीर्थों पर जाकर परमात्मा के दर्शन करें या न करें उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता, परन्तु इन देवी-देवताओं की आराधना होनी चाहिए क्योंकि वे मनोकामनाओं को पूर्ण करते है। ___ यदि इस विषय में सूक्ष्मता से चिन्तन किया जाए तो सामान्य लोक व्यवहार है कि बाप और बेटा दोनों उपस्थित हो तो पहले पिता का सम्मान होता है फिर पुत्र का। जहाँ उच्च अधिकारी स्वयं आपका मित्र हो तो आप चपरासी की चापलुसी नहीं करते तो फिर शाश्वत सुख के दाता परमात्मा के समक्ष हम उन्हीं के सेवक का अधिक सम्मान करें, यह कहाँ तक उचित है? यद्यपि परमात्मा को इससे कोई फरक नहीं पड़ता क्योंकि वे तो वीतरागी हैं। परन्तु जैन धर्म जहाँ संसार समाप्ति की शिक्षा देता है वहाँ सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए देवी-देवताओं के पूजन को बढ़ावा देना कहाँ तक सही है? यह निश्चित विचारणीय है। जिन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों को समझते हुए अपनी विचारधारा को सम्यक बनाएं यही प्रयास इस अध्याय के माध्यम से किया गया है। सन्दर्भ-सूची 1. त्रिकालवी महापुरुष, पृ. 140-149 बृहत् शान्ति धारा 2. आचार दिनकर के अनुसार दो हाथ हैं, जिसमें दाएं हाथ में शक्ति एवं बाएं हाथ में कमल धारण किया हुआ है। 3. आचार दिनकर के अनुसार दो हाथों में श्रृंखला और गदा। 4. आचार दिनकर के अनुसार खड्ग, वज्र, ढाल, भाला। 5. आचार दिनकर के अनुसार दो हाथों में खड्ग और ढाल। 6. आचार दिनकर के अनुसार दो हाथों में गदा और वज्र। 7. आचार दिनकर के अनुसार कृष्ण वर्ण। 8. आचार दिनकर के अनुसार दो हाथों में मूसल और व्रज। 9. आचार दिनकर के अनुसार बिल्ली का वाहन तथा ज्वाला युक्त दो हाथ।

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