Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 725
________________ परिशिष्ट ...659 कणाली : कणी नाम का थर कपिली : शुक नास के दोनों तरफ शिखराकृति मंडप, अंतराल मंडप। कपोताली : केवाल थर, कपोतिका। करोटक : गुम्बज कर्ण : कोना, पट्टी, सिंह कर्ण, कोना प्रक्षेप, कोण प्रस्तर। कर्णक : थरों के ऊपर-नीचे रखी जाने वाली पट्टी। कर्ण कूट : कर्ण या कोने के ऊपर निर्मित लघु मंदिर या कंगूरा। कर्ण गूढ़ : छिपा हुआ कोना, बन्द कोना। कर्ण श्रृंग : कर्ण या कोने पर निर्मित कंगूरा कर्णिका : थरों के ऊपर नीचे की पट्टी, छोटा कोना, कोण और प्ररथ के बीच में कोणी का फालना, असिधार की तरह का गोटा, पतला पट्टी जैसा गोटा। कर्ण दर्दरिका : गुम्बज की ऊँचाई में निचला थर कर्ण सिंह : प्रासाद के कोने पर रखा सिंह कर्णाली : कणी, जाड्यकुम्भ के ऊपर का थर। कर्म / क्रम : श्रृंगों का समूह कलश : पुष्प कोश के आकार का गोटा जिसका आकार घट के समान होता है। दक्षिण भारतीय शैली में स्तम्भ शीर्ष का सबसे नीचे का भाग। कलशाण्डक : कलश के पेट कला : रेखा विशेष कलास्र : सोलह कोने कामदपीठ : गज आदि थरों से रहित पीठ। कीर्ति वक्त्र : ग्रास मुख कीर्ति स्तम्भ : विजय स्तम्भ तोरण वाले स्तम्भ। कीर्ति मुख : सिंह के शीर्ष की बनावट वाली प्रतीकात्मक डिजाइन। कायोत्सर्ग : खड्गासन, तीर्थंकर की खड़ी प्रतिमा। कीलक : कील, खूटा कुंचिता : प्रासाद के 3/10 भाग के मान की कोली।

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