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परिशिष्ट ...667
प्रतिकर्ण प्रति भद्र प्रतिरथ
प्रतिष्ठा
प्रतोली
प्रत्यंग प्रदक्षिणा प्रवाह । प्रवेश
प्रहार
प्रस्तार प्राक् प्राकार प्रासाद प्राग्ग्रीव फलक फालना फांसना
: कोने के समीप का दूसरा कोना। : मुख भद्र के तीनों तरफ के खांचे। : कोने के समीप का चौथा कोना, भद्र और कर्ण के मध्य का
प्रक्षेप। : देव स्थापना विधि। : पोल, प्रासाद आदि के आगे तोरण युक्त दो स्तम्भ वाला
देवालय अथवा चार स्तम्भ और उसके ऊपर मूर्ति एवं मेहराबदार बना हुआ सुन्दर स्तम्भ। : शिखर के कोने के दोनों तरफ लम्बा चतुर्थांश मान का श्रृंग। : परिक्रमा, फेरी। : पानी का बहाव, प्लव। : थरों के भीतर का भाग। : श्रृंगों के नीचे का थर। : दक्षिण भारतीय विमान का विस्तार, कोणी मंडप। : पूर्व दिशा, प्राची। : मन्दिर को परिवृत्त करने वाली भित्ति। : देव मन्दिर, राजमहल। : मंडप, मुख मंडप का प्रक्षेप, गर्भगृह के आगे का मंडप। : स्तम्भ का शीर्ष भाग। : प्रासाद की दीवार के खांचे। : भवन का आड़े पीठों से बना भाग, पश्चिमी भारत में
प्रचलित जिसे उड़ीसा में पीढ़ा देउल कहते हैं। : बलाण, कक्षासन वाला मंडप, गर्भगृह के आगे का मुख मंडप, आवृत्त सोपानबद्ध प्रवेश द्वार, टंकारखाना,
नगारखाना। : शिवलिंग। : कलश के ऊपर का बिजौरा। : जंघा को ऊपरी और निचले भागों में विभक्त करने वाला एक
प्रक्षिप्त गोटा।
'बलाणक
बाण
बीजपुर
बांधना