Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 712
________________ केश 646... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन क्योंकि ये हमारे विघ्न निवारण में ही सहायक हैं जबकि जिनेश्वर प्रभु की आराधना सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान एवं सम्यकचारित्र की उत्पत्ति का कारण है तथा परम्परा से मोक्ष का हेतु है इसलिए अरिहंत परमात्मा के प्रति सर्वात्मना समर्पित होकर पूजादि उपचार करने चाहिए। वर्तमान में क्षेत्रपाल आदि देवों को भगवान से अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जो सर्वथा अनुचित है। निर्वाणकलिका (पृ. 82-83) के अनुसार क्षेत्रपाल का स्वरूप इस प्रकार है नाम : अपने क्षेत्र के अनुरूप नाम वर्ण : श्याम : बर्बर नेत्र : पीले दाँत : विरूप एवं बड़े आसन : पादुका पर रूप : नग्न भुजा : छह दाहिने हाथ में : मुद्गर पाश, डमरू बायें हाथ में: कुत्ता, अंकुश, लाठी आचारदिनकर में क्षेत्रपाल का निम्न स्वरूप बतलाया गया ही नाम : कृष्ण, गौर, सुवर्ण, पांडु, भूरे वर्ण भुजा : बीस केश : बर्बर तथा बड़ी जटाएँ यज्ञोपवीत : वासुकी नाग मेखला : तक्षक नाग हार : शेष नाग हाथों में : अनेक भाँति के शस्त्रों का धारण धार : सिंह चर्म आसन : प्रेत वाहन : कुत्ता नेत्र : मस्तक पर तीन नेत्र

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