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464... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
3. वचा- यह कण्ठ हितकारी, स्मरण शक्ति वर्धक, भूत-उन्माद आदि की नाशक तथा अनेक गुणों से युक्त है। इससे प्रतिमा पर बाह्य शक्तियों का प्रभाव नहीं होता। ___4. उशीर- यह शीतल, श्रमनिवारक एवं सुगंधित औषधि है। इसके प्रयोग से वातावरण शांत एवं शीतल बनता है।
5. देवदार- आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार यह वनस्पति हिचकी, खुजली, चर्म रोग आदि में लाभदायी है। इस औषधि के स्पर्श से पाषाणजन्य विकार दूर होते हैं, प्रतिमा के तेज में अभिवृद्धि होती है तथा भूत-प्रेत आदि के संकट टलते हैं।
6. दूर्वा (दूब)- दूर्वा एक मशहूर घास है जो भारत में सर्वत्र पाई जाती है। यह शीतल, तृप्तिदायक, श्रम एवं कफ नाशक तथा ग्रहपीड़ा, भूतबाधा, रक्तप्रदर आदि के निवारण में उपयोगी है। इससे वातावरण में शीतलता एवं प्रसन्नता का संचार होता है।
___7. मधुयष्टिका (मुलेठी)- यह वनस्पति मधुर, पौष्टिक, शीतल, नेत्र हितकारी, वर्ण को सुंदर करने वाली और स्वर को निर्मल करने वाली मानी गई है। इससे प्रतिमा में निखार आता है। ___8. ऋद्धि- यह पुष्टिकारक, निर्मल एवं शीतल गुणकारी है। इसकी सुगंध से जिनालय का वातावरण पवित्र बनता है।
इस प्रकार उक्त आठ औषधियों के विकीर्ण परमाणुओं से दर्शकों के मन में शान्ति एवं समाधि का अनुभव होता है।
नौवाँ अभिषेक- यह अभिषेक द्वितीय अष्टक वर्ग की औषधियों से किया जाता है। इस औषधि वर्ग में मेद, महामेद, कंकोल, क्षीर-कंकोल, जीवक, ऋषभक, नखी, महानखी नाम की औषधियों का प्रयोग करते हैं।
1. मेद- यह मधुर, शीतल, स्वादिष्ट, वीर्य एवं धातुवर्धक है तथा वातपित्त, रक्त आदि के विकारों का शमन करती है।
2. महामेद- यह अष्ट वर्ग की एक सुप्रसिद्ध वनस्पति है। राजनिघंटु के मतानुसार यह शीतल, मधुर, वीर्यवर्धक तथा रक्त-पित्त, ज्वर आदि का नाश करने वाली मानी गई है।
3. कंकोल- इस औषधि का प्रयोग अवस्थास्थापक, बलकारक एवं