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478... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन व्यवहार में इसे 'इंडा' भी कहा जाता है।
कलशारोहण की आवश्यकता क्यों?- प्रश्न हो सकता है कि मंदिर के शिखर पर कलश का आरोपण क्यों किया जाता है? __ सर्वप्रथम कलश को मंगल का प्रतीक माना गया है। इसका समावेश अष्टमंगल, चौदह स्वप्न आदि में तो होता ही है। साथ ही इसे श्रेष्ठता, पूर्णता, अखण्डता एवं शुभता का सूचक भी माना जाता है। सामान्यतया किसी भी कार्य की पूर्णाहुति पर जैसे कि कई आचार्यों द्वारा रचित पूजाओं एवं चौबीसियों आदि की पूर्णता के रूप में कलश की रचना देखी जाती है अथवा विवाह, तीर्थयात्रा, किसी भी मंगल कार्य का प्रारम्भ या समापन इसके द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार कलशारोहण के माध्यम से यह सूचित किया जाता है कि अब जिनमंदिर सम्बन्धी मुख्य कार्य सम्पन्न हो चुका है और सम्पूर्ण जगत के लिए मंगलकारी ऐसे जिनालय की विधि पूर्वक प्रतिष्ठा या स्थापना हो चुकी है। कलश का मध्य भाग सुप्त व्यक्तित्व को विराटता में परिवर्तित करने का संदेश देता है तथा उसकी मुखाकृति नारियल की भाँति जड़-चेतन का भेद दर्शाते हुए मोक्ष फल प्राप्ति की प्रेरणा देती है।
जिनालय के शिखर पर कलश देखकर दूर से ही जिनमंदिर होने की जानकारी प्राप्त हो जाती है। आज के आबादी युक्त क्षेत्रों में तो इससे मंदिर ढूंढ़ने में विशेष सहायता होती है।
इसे देखकर व्यक्ति के मन में यदि परमात्म दर्शन के भाव जग जाए तो अनंत कर्मों की निर्जरा हो सकती है। इसके माध्यम से शारीरिक अस्वस्थता या अन्य कारणों से दर्शन करने में असक्षम व्यक्ति अपने स्थान से भी परमात्म दर्शन के भाव कर सकता है। जिससे मानसिक आनंद की अनुभूति होती है और तनाव आदि दूर होते हैं।
___ कलश सुंदरता का प्रतीक भी माना जाता है। जिस प्रकार राजा की शोभा उसके मुकुट से होती है वैसे ही मंदिर की शोभा कलश से होती है।
कलश कैसा हो?- कल्याणकलिका में कलश निर्माण सामग्री की चर्चा करते हुए कहा गया है कि जिससे जिनालय का निर्माण किया जाए उसी द्रव्य से कलश का भी निर्माण करना चाहिए। जैसे मंदिर पाषाण का हो तो कलश भी पाषाण का, काष्ठ का हो तो काष्ठ का धातु का हो तो धातु का। इस प्रकार जिस द्रव्य या धातु विशेष से जिन मंदिर का निर्माण हुआ हो कलश भी उसी द्रव्य