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प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...563
श्री जगच्चन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठाकल्प का उद्धार किया और उसमें से यह प्रतिष्ठाकल्प उपाध्याय सकलचन्द्रगणि ने निर्मित कर आचार्य हरिभद्रसूरिहेमचन्द्राचार्य-श्यामाचार्य-गुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठाकल्पों के साथ संयुक्त करके श्री विजयदान सूरिजी के समक्ष संशोधित किया है।
प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्प उपाध्याय सकलचन्द्र की ही कृति है अथवा किसी के द्वारा इनके नाम से प्रसिद्ध की गई अर्वाचीन कूट कृति है, इस शंका का समाधान अपेक्षित है। ऊपर वर्णित समाप्ति लेख की अशुद्धियाँ और प्रशस्ति का अभाव देखकर यह ग्रन्थ सकलचन्द्र की कृति होने के विषय में शंका उत्पन्न करता है। इसके उपरान्त भी प्रचलित विधि-विधानों का अनुसरण करते हुए इसे सकलचन्द्र की कृति के रूप में स्वीकार भी कर लिया जाए तब भी यह वर्तमान रूप में तो उपाध्याय सकलचन्द्र की कृति नहीं हो सकती है क्योंकि इसमें कई अक्षम्य त्रुटियाँ है और इसके कितने ही विषय अस्त-व्यस्त देखे जाते हैं जैसे कि
1. प्रस्तुत प्रतिष्ठा कल्प के अतिरिक्त अन्य प्रतिष्ठा कल्पों में पांचवाँ अभिषेक पंचगव्य से करने का निर्देश है जबकि इस कल्प में पंचगव्य अभिषेक को नौवाँ स्थान दिया गया है तथा पंचगव्य के स्थान पर 'सदौषधि' का उल्लेख है।
अभिषेक की सामग्री के संबंध में भी परिवर्तन दिखाई देता है। अन्य प्रतिष्ठाकारों ने गाय का दूध, दही, घी, मूत्र और छाणा- इन पाँच वस्तुओं को पंचगव्य के रूप में स्वीकार किया है उनके स्थान पर इस कल्प में दूध, दही, मक्खन, घृत और छाछ इन पाँच के समुदाय को 'पंचगव्य' कहा है, जो यथार्थ नहीं है। मक्खन और घृत, दही और छाछ - ये भिन्न-भिन्न वस्तुएँ नहीं हैं एक-एक द्रव्य के ही अवस्थापरक दो भिन्न नाम हैं। इस प्रकार वास्तविक रीति से देखें तो पंचगव्य के स्थान पर त्रिगव्य का ही अभिषेक होता है। जबकि प्रत्येक प्रतिष्ठा कल्पकारों ने पंचगव्य अभिषेक का विधान किया है। उपाध्याय जैसे समर्थ विद्वान् दही और छाछ तथा मक्खन और घी को भिन्न द्रव्य के रूप में मानने की त्रुटि नहीं कर सकते हैं।
2. अन्य प्रतिष्ठा कल्पों में छठवाँ अभिषेक 'सदौषधि' का है वहीं प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्प में छठा अभिषेक प्रथम अष्टकवर्ग का माना गया है तथा इस