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प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...581 4. 'श्रेयांसि बहु विघ्नानि' इस कथन के अनुसार प्रतिष्ठा जैसे कल्याणकारी अनुष्ठानों में भी विघ्न करने वाले होते हैं। मंडप में फोसफरस डालकर अथवा आग आदि लगाकर रंग में भंग करने वाले होते हैं इसलिए प्रतिष्ठाचार्य आदि अधिकारी वर्ग को ऐसी सुरक्षा अवश्य करनी चाहिए कि जिससे उक्त प्रकार की घटनाएँ न हों।5। विधिकारकों एवं स्नात्रकारों से कुछ निवेदन ___ वर्तमान में कितने ही विधिकारक एवं स्नात्रकार प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में क्वचित चमत्कार दिखाकर श्रीसंघ और लोगों के मानस पटल पर यह प्रभाव स्थापित करते हैं कि 'प्रतिष्ठा बहुत अच्छी हुई है। जिस युग में श्रीपूज्यों एवं यतिओं के सानिध्य में प्रतिष्ठाएँ होती थीं, उस समय शान्तिस्नात्र आदि में बलिक्षेपण के प्रसंग पर अखण्ड नारियल को आकाश में उछालकर उसका खाली खोखा नीचे गिरते हुए दिखाते थे। उपस्थित जन समुदाय इस तरह की आश्चर्यचकित करने वाली घटनाएँ देखकर यह मानता था कि “नारियल का भीतरी गोला देवताओं ने ग्रहण कर लिया है और कांचली का खोखा नीचे गिरा दिया है।"
इसमें यथार्थता यह थी कि बलिक्षेपण करने वाले यतिजन नारियल को चोटी सहित फोड़कर उसमें से गिरि निकाल लेते थे और कांचली को ठीक से जोड़कर ऊपर में मौली बांधकर बलि बाकला के ऊपर रख देते। फिर बलिक्षेप करते समय नारियल को भी उछालते तथा नीचे पड़ते हुए खोखे को देखकर लोग उसे चमत्कार मानते थे, परन्तु आधुनिक युग में इस प्रकार का पाखण्ड नहीं किया जाता है।
आजकल के जो विधिकारक केमिकल्स आदि के द्वारा अमीझरणा दिखाकर वाह-वाह करवाते हैं और ऐसी प्रवृत्तियों में लाभ मानते हैं उन्हें उस तरह की परिपाटी बंद करनी-करवा देनी चाहिए।
यदि हम वर्तमान अनुष्ठानों एवं विधि-विधानों पर नजर दौड़ाते हैं तो प्रतीत होता है कि आज उनमें सबसे मुख्यपात्र विधिकारक बन गए हैं। विधिकारक जो करवाए, जैसे करवाए श्रावक वर्ग के लिए वही राजमार्ग है। साधु-साध्वी अपनी आचारगत मर्यादा एवं सीमित संख्या के कारण सर्वत्र पहँच नहीं सकते। श्रावक वर्ग दौड़-भाग भरी प्रतिस्पर्धामय जीवन शैली में स्वाध्याय,