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492... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
इस पूजन में नवग्रह आदि देवी-देवता जिस वर्णवाले हैं अथवा उन्हें जो वर्ण प्रिय हैं जैसे इन्द्र देवता को पीला वर्ण प्रिय है, यम देव को श्याम वर्ण प्रिय है तो उनके इच्छित वर्ण के अनुसार पुष्प, फल, नैवेद्य, धान्य आदि चढ़ाये जाते हैं। ___पाटला पूजन की आवश्यकता क्यों?- प्रश्न हो सकता है कि प्रतिष्ठा एवं जिनबिम्ब स्थापना एवं परमात्म भक्ति का मांगलिक कार्यक्रम है, उसमें देवी-देवताओं की स्थापना-पूजन आदि क्यों? __प्रतिष्ठा आदि महोत्सवों पर समस्त नगर जनों एवं सरकारी पदाधिकारियों आदि को आमंत्रित किया जाता है, जिससे उन लोगों के मन में जिनधर्म के प्रति राग उत्पन्न हो और वे धर्म प्रभावना में किसी भी प्रकार से बाधा उत्पन्न न करें। इसी प्रकार देवी-देवताओं को भी जिनधर्मानुरागी बनाने हेतु उनका आह्वान एवं स्थापन किया जाता है।
दूसरा प्रयोजन यह माना जाता है कि मांगलिक कार्यों में उन्हें तुष्ट रखने पर वे किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं करते प्रत्युत उस कार्य में सहायक बनते हैं। अत: मंगल एवं आतिथ्य सत्कार की भावना से देवी-देवताओं का आह्वान आदि किया जाता है।
यद्यपि नवग्रह से सम्बन्धित देवी-देवता सम्यक्त्वी हैं इसलिए इनका सम्मान न भी किया जाये तो वे शासन कार्यों में बाधक नहीं बनते किन्तु सम्यक्त्वी होने से हमारे साधर्मिक हैं। अत: अन्य साधर्मिकों की तरह उन्हें भी आमन्त्रित करना लोकाचार है। दूसरे, नवग्रहादि सम्यग्दृष्टि देवों का पूजन आदि करने पर मिथ्यात्व का दोष भी नहीं लगता है।
दसों दिशाओं के अधिपति देवों का सम्मान करने से सभी कार्य निर्विघ्न होते हैं।
अष्टमंगल, आठ मांगलिक चिह्नों का समह है जिसका पूजन करने से अमंगल का नाश होता है। पूर्वकाल में मंगल की स्थापना हेतु उनकी रचना की जाती थी। वर्तमान में अष्टमंगल का बना-बनाया पट्ट उपलब्ध होने से उसी के ऊपर पूजादि सामग्री चढ़ाते हैं। नवग्रह और दशदिक्पाल का पूजन भी पट्ट पर ही करते हैं।
प्राचीन समय में काष्ठ पट्टों या वस्त्रों पर इन सभी के चित्र उल्लेखित किये जाते थे, परन्तु शनै:-शनै: आलेखन की परम्परा लुप्त होने से चित्रित पट्टों का