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546... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
बलि बाकला से प्रसन्न हुए क्षेत्र देवता जिनशासन की उन्नति और प्रभावना करते हैं। इसके द्वारा प्रतिष्ठाकर्ता और पूजाकर्ता के विशेष प्रकार से पुण्यानुबंधी पुण्य का उदय आदि होता हैं इसलिए बाह्य प्रतिष्ठा में बलिबाकुला जरूरी है। सफेद सरसों की पोटली का उपयोग क्यों?
प्रतिष्ठा उत्सव के दौरान नवीन जिनबिम्बों के दायें हाथ में श्वेत सरसों की पोटली बांधी जाती है। इसके पीछे कई रहस्य अन्तर्निहित है। सर्वप्रथम सफेद सरसों सदि विष एवं ग्रह पीड़ा नाशक मानी गयी है। तान्त्रिक विद्याओं में शक्ति प्रयोग, वशीकरण एवं अभिमन्त्रण हेतु इसका उपयोग किया जाता है। लोक व्यवहार में नजर आदि उतारने के लिए इसे विशेष प्रभावी माना गया है। इस वस्तु के प्रयोग द्वारा आसुरी शक्तियों से भी रक्षा की जा सकती है।
इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए जिन प्रतिमा के हाथ में सरसों की पोटली बांधी जाती है। इससे नूतन बिम्बों का आसुरी उपद्रवों एवं बुरी नजर से रक्षण होता है। लोक व्यवहार में भी नव विवाहित दम्पति युगल को राई की पोटली रखने हेतु कहा जाता है। मीढ़ल और मरडाशिंग हाथ में क्यों बांधे? __ कई लौकिक मांगलिक प्रसंगों, जैसे विवाह आदि में वर-कन्या के हाथों में और धार्मिक प्रसंगों, प्रतिष्ठा-पूजन आदि के समय मुख्य अभिषेककर्ता आदि के हाथ में कंकण डोरा बांधा जाता है जिसमें मींढल एवं मरडाशिंगी बंधी हुई रहती है।
मींढल को मदनफल या मेनफल तथा मरडाशिंग को मृगशिंगा अथवा मरोडफली भी कहते हैं। मीढल अखरोट जैसे आकार वाला होता है और मरडाशिंग एक लम्बी जड़ी-बूटी होती है। इन औषधियों को हाथ पर बांधने के कई प्रयोजन हैं
मीढ़ल अपने गुणधर्म के अनुसार मीठा, गरम और हल्का होता है। यह जुकाम-कफ आदि को दूर करने वाला, हृदय हितकारी तथा मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों में लाभकारी है। यदि शुभ कार्यों को सम्पन्न करते हुए सिरदर्द आदि किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न हो जाये तो इन जड़ी-बूटियों के प्रयोग से तुरन्त राहत मिल सकती है।