________________
554... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
आध्यात्मिक क्षेत्र में इसे आत्मा और शरीर के भेद का सूचक माना गया है। इसका प्रत्येक भाग विविध कार्यों में उपयोगी होता है । यह अन्य फलों की अपेक्षा अधिक समय तक टिकता है अतः किसी निर्जन स्थान में भी मंगल फल के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।
इस प्रकार कल्याण एवं मुक्ति का सूचक होने से प्रत्येक मांगलिक कार्यों में श्रेष्ठ वस्तु के रूप में सर्वप्रथम इसी की स्थापना करते हैं। वस्तु के गुणधर्म एवं तत्सम्बन्धी मान्यता के अनुसार आयोजनकर्त्ता के विचार तरंगों में भी तद्रूप भावों का उदय होता है। यह बाह्य और आभ्यन्तर द्विविध कोटियों से मंगलकारी है।
नागवल्ली (नागरवेल, पान) - नागवल्ली, यह पान के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यह स्वभावतः मुँह की दुर्गन्ध, मल, वात, त्रिदोष और श्रम को दूर करता है। इसका उपयोग करने से धारणा शक्ति बढ़ती है और अन्य भी कई लाभ होते हैं। गुणवत्ता की दृष्टि से यह स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि करता है। धार्मिक दृष्टि से पान को मंगलकारी एवं वातावरण की शुद्धि करने वाला भी माना गया है। इन्हीं कारणों से पूजा - गृहप्रवेशादि मंगल कार्यों में इसका प्रयोग करते हैं।
प्रतिष्ठा अंजनशलाका विधान के संदर्भ में किया गया यह रहस्योद्घाटन जन मानस को प्रतिष्ठा विधानों का हार्द समझाने एवं उनके मौलिक उद्देश्यों से रूबरू करवाने में सहयोगी तो बनेगा ही साथ ही उन विधियों में अन्तर्भूत अनेक विध दृष्टिकोणों को भी स्पष्ट करेगा। कई ऐसे अनुष्ठान है जिनको मात्र परम्परा अनुकरण करते हुए किया जाता है तो कई ऐसे भी विधान है जिनका आगमन लोक व्यवहार या अन्य परम्पराओं से प्रभावित होकर जैन क्रिया अनुष्ठानों में हुआ। कई विधियों का निर्देशन सामाजिक एवं आध्यात्मिक उत्थान हेतु भी किया गया है तो कुछेक के पीछे विशिष्ट वैज्ञानिक तथ्य रहे हुए है। इन क्रियाविधियों को यदि तत्सम्बन्धी जानकारी पूर्वक किया जाए तो यह अवश्य ही वैयक्तिक, सामाजिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर अनेक प्रकार से लाभकारी हो सकती है तथा एक सुदृढ़ समाज एवं उत्तम जिन मन्दिर के निर्माण में सहयोगी बन सकती है।