________________
552... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
धातु को बिजली का अच्छा संचालक माना जाता है । विविध धातुओं की प्रवाह शक्ति भिन्न-भिन्न होती है। जैसे तांबे के तार की अपेक्षा चाँदी के तार से बिजली शीघ्र गति से प्रवाहित होती है एवं सोने के तार में उससे भी तीव्र गति से प्रवाहित होती है।
जिस प्रकार विद्युत शक्ति धातु तार के माध्यम से प्रवाहित होती है वैसे ही मन्त्र शक्ति भी प्रवाहित होती है। आचार्य एवं चूर्ण पीसने वाली नारियाँ कंकण युक्त हों इस उल्लेख के पीछे भी यही कारण होना चाहिए। स्वर्ण कंकण धारण करने से आचार्यों की साधना एवं मंत्र शक्ति जिनबिम्ब में शीघ्र प्रवाहित हो सकती है तथा खंडण पीसण करने वाली महिलाओं के भीतर के शुभ भाव एवं सर्व मंगल की भावना स्वर्ण कंकण के माध्यम से उन द्रव्यों में त्वरित वेग से पहुँचती है। सोना जन्तुनाशक भी है और उसमें प्रतिरोधात्मक शक्ति का विशिष्ट गुण भी रहा हुआ है।
जैन शास्त्रों में आराधना हेतु अखण्ड वस्त्र के प्रयोग का विधान क्यों है?
सामान्यतया अखंड वस्त्र को मंगलकारी माना जाता है। अखंड वस्त्र में शक्ति का संचय होता है वहीं सिले या फटे हुए वस्त्र में वह शक्ति टुकड़ों में बँट जाती है।
वस्त्र सिला हुआ हो तो ऊर्जा बंध जाती है तथा कटे एवं जले हुए वस्त्रों से बाहर की ओर प्रवाहित होती है । ब्राह्मण लोग भी यज्ञोपवीत आदि की क्रिया में तथा मुसलमान मक्का-मदीना की यात्रा में लुंगी के रूप में बिना सिला अखंड वस्त्र धारण करते हैं। साधुओं एवं श्रावकों के लिए भी अखंड वस्त्रों का विधान है। अखंड वस्त्र पहनने से शारीरिक अनुकूलता एवं खुलापन रहता है जिससे साधना में मानसिक एवं शारीरिक एकाग्रता सधती है। इन्हीं हेतुओं से अखंड वस्त्र का विधान धर्म क्रियाओं में किया गया है।
पूजन आदि विधानों में कुसुमांजलि करने का क्या अभिप्राय है?
पुष्पों को पवित्र, कोमल एवं शुद्ध माना जाता है। ऐसे साधनों से हमारी भावनाएँ शीघ्र गन्तव्य तक पहुँचती हैं। कमल एक रडार के समान माना है। उसके द्वारा भावनाएँ पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो जाती हैं। कुसुम की ग्राहक शक्ति तीव्र है, उसके माध्यम से भावनाओं एवं मन्त्रों का प्रतिमा में शीघ्र न्यास हो सकता है।