Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 624
________________ 558... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन श्वेताम्बरीय और दिगम्बरीय विस्तृत प्रतिष्ठा पद्धतियाँ होनी चाहिए और उन्होंने उन पद्धतियों का न केवल अनुकरण ही किया है प्रत्युत अतिदोहन भी किया है। दूसरे, आचार दिनकर की प्रतिष्ठा पद्धति में निर्दिष्ट नन्द्यावर्त पूजन और महापूजा प्रकरण में अतिगम्भीर और विद्वत्तापूर्ण काव्यों की छटा के दर्शन होते हैं। इससे यह अनुमान होता है कि वे काव्य आचार्य वर्धमानसूरि के पुरोगामी कोई समर्थ विद्वान् प्रतिष्ठा कल्पकार की प्रासादिक रचना होनी चाहिए। तीसरे, प्राचीन श्वेताम्बर आचार्यों ने नन्द्यावर्त पूजन को प्रतिष्ठा के प्रधान अंग के रूप में स्वीकार कर उस पूजन को विस्तृत किया है। इसीलिए आचार्य वर्धमानसूरि ने भी नन्द्यावर्त पूजन का सविस्तृत निरूपण किया है। इसके पश्चात तपागच्छीय गुणरत्नसूरि सन्दर्भित प्रतिष्ठा कल्प उपलब्ध होता है। यह सभी प्रतिष्ठा कल्पों में सर्वश्रेष्ठ, परम विशुद्ध, सरल संस्कृत भाषा गुम्फित और अतिसुगम है। इस प्रतिष्ठा कल्प का रचनाकाल विक्रम की 15 वीं शती का उत्तरार्ध है। इसके परवर्ती श्री विशालराज शिष्यकृत प्रतिष्ठाकल्प भी प्राय: शुद्ध है। उसका रचनाकाल विक्रम की 15 वीं शती का प्रान्त भाग अथवा 16 वीं शती का प्रारम्भिक काल है। तत्पश्चात आचार्य जिनप्रभसूरि की प्रतिष्ठा विधि का अनुसरण करते हुए किसी खरतरगच्छीय विद्वान के हाथ से पडिमात्रा वाली लिपि में लिखा गया प्रतिष्ठाकल्प प्राप्त होता है। इसमें कर्ता का नामोल्लेख एवं उसके रचनाकाल का निर्देश नहीं है। फिर भी उसकी भाषा और लिपि के आधार पर वह प्रतिष्ठा कल्प 16 वीं शताब्दी के अन्त भाग का अथवा 17 वीं शताब्दी के प्रारम्भ का ज्ञात होता है। तदनन्तर उपाध्याय सकलचन्द्रगणि कृत आठवाँ प्रतिष्ठा कल्प आधुनिक विधिकारकों में विशेष आदरणीय और प्रचलित है। इतना ही नहीं, आचार दिनकर की प्रतिष्ठा विधि से परवर्ती अन्य सभी विधियों की अपेक्षा यह प्रतिष्ठा कल्प अधिक विस्तृत भी है। इस प्रतिष्ठा कल्प का रचना काल विक्रम की 17 वीं शती का मध्य भाग है। ___इस प्रकार निर्वाण कलिका से लेकर पाँचवें गुणरत्नसूरि तक के पाँच प्रतिष्ठा कल्प शुद्ध संस्कृत भाषा में रचित हैं तथा उससे परवर्ती छठां, सातवाँ एवं आठवाँ प्रतिष्ठा कल्प प्राचीन लोकभाषा में लिखे गये हैं।

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