Book Title: Pratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 625
________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... ...559 यदि उपर्युक्त आठों प्रतिष्ठाकल्पों के मूल आधार के संबंध में विचार करें कि कौनसी प्रतिष्ठा विधि किस प्रतिष्ठा कल्प का अनुसरण करती है तो निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं कालक्रम के अनुसार दूसरी, तीसरी एवं सातवीं प्रतिष्ठा विधि एक-दूसरे का अनुकरण करती हैं। इसी तरह पाचवाँ और छठा प्रतिष्ठा कल्प अधिकांशतः एक-दूसरे का अनुसरण करता है। जबकि पहली, चौथी एवं आठवीं इन तीन प्रतिष्ठा कल्पों की विधियाँ किसी भी अन्य प्रतिष्ठा कल्प की विधि से समानता नहीं रखती हैं। ___ पहला निर्वाण कलिका का प्रतिष्ठा कल्प प्राचीन होने के कारण दूसरे कल्पों से कई विधि नियमों में पृथक मालूम होता है। इसमें जलयात्रा की विधि के समान अभिषेक विधि भी उल्लिखित नहीं हैं। यद्यपि अभिषेक की सामग्री सूची दी गई है। इस प्रतिष्ठाकल्प में नन्द्यावर्त्त पूजन को अत्यन्त महत्त्व दिया गया है। इसमें नन्द्यावर्त पूजन के तुरन्त पश्चात प्रतिष्ठा विधि कही गई है। यहाँ दिक्पाल और नवग्रहों की स्थापना और पूजन को स्वतन्त्र रूप से आवश्यक नहीं माना है, किन्तु नन्द्यावर्त पूजन में उन सभी का समावेश करके प्रतिष्ठा विधि को अल्प व्यय और अल्प कष्ट साध्य वाली प्रस्तुत की गई है। निर्वाण कलिका की प्रतिष्ठा विधि कितने ही अंशों में दिगम्बरीय प्रतिष्ठा पद्धति के समरूप है। दिगम्बर परम्परागत प्रतिष्ठा कल्पों का उद्गम स्थल इसी प्रतिष्ठा पद्धति को माना गया है, अत: दोनों प्रतिष्ठा कल्पों में न्यूनाधिक समानता होना स्वाभाविक है। वस्तुतः निर्वाण कलिकान्तर्गत प्रतिष्ठा पद्धति का मूल आधार भी कोई अति प्राचीन प्राकृत प्रतिष्ठाकल्प है। - दूसरा श्रीचन्द्रसूरि संकलित प्रतिष्ठा कल्प भी संभवतः किसी प्राचीन प्राकृत प्रतिष्ठा कल्प के आधार पर ही रचा गया है। तदुपरान्त इसमें किसी भी गाथा का प्रामाणिक रूप से उल्लेख नहीं है। इस प्रतिष्ठा कल्प का मंत्रभाग भी अत्यन्त संक्षिप्त है। इससे प्रतीत होता है कि श्रीचन्द्रसूरि ने निर्वाण कलिका के आधार पर रचित किसी प्राचीन पद्धति का सहयोग प्राप्त कर इस प्रतिष्ठा पद्धति का निर्माण किया है।

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