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550... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन कार्यों में इनकी सन्निधि भी रहती है। शिला स्थापना करते समय मध्य शिला के अधो भाग में एवं प्रतिष्ठा के समय मूलनायक भगवान की गादी के नीचे स्वर्ण या चाँदी का कूर्म किस प्रयोजन से रखा जाता है? ____ हिन्दू मान्यता के अनुसार कूर्म पृथ्वी को धारण करता है वैसे ही यह जिनालय को धारण करके रहे। शिलास्थापना करते समय जब तक खनन के द्वारा पानी नहीं आता है तब तक यह विधि नहीं करते हैं। उसके पश्चात मध्य भाग में शिला रखकर उस पर कूर्म रखते हैं। कूर्म जल तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। कूर्म नाड़ी भी है। जहाँ जलीय प्रदेश होते हैं वहीं मन्त्र आदि की साधना सिद्ध होती है। पानी में ग्राहकत्व शक्ति का विशिष्ट गुण है इसीलिए उपचार के लिए भी पानी को ही अभिमन्त्रित करते हैं। खनन के समय पानी न आने तक खोदने का अभिप्राय भी आध्यात्मिक है। क्षेत्रपाल आदि देवों की स्थापना डाभ में ही क्यों की जाती है?
डाभ देवताओं का प्रिय फल है। हरा नारियल युवावस्था का प्रतीक है एवं देवता भी सदा युवा रहते हैं। इसी के साथ नारियल को श्रीफल या मंगल का प्रतीक भी माना गया है। महापूजन आदि की अवधि अल्प होने से इनमें डाभ की स्थापना की जाती है तथा प्रतिष्ठा आदि विधानों में दीर्घ समय लगने के कारण चोटी वाले नारियल की स्थापना करते हैं, क्योंकि डाभ के विकृत होने एवं मच्छर आदि जीवों की उत्पत्ति होने की सम्भावना रहती है। मांगलिक प्रसंगों में की गई कुंभस्थापना आदि का विसर्जन क्यों आवश्यक है?
कुंभ आदि की स्थापना विशिष्ट उद्देश्य से की जाती है तथा उस उद्देश्य के पूर्ण होने तक उनकी पूजा-अर्चना भी विधिवत हो जाती है। विधान पूर्ण होने के बाद उस स्थापना का कोई प्रयोजन न रहने से उनका उचित आदर-सम्मान सम्यक प्रकार से नहीं हो पाता अत: इस आशातना से बचने के लिए विसर्जन करना आवश्यक है। इस विसर्जन क्रिया के द्वारा जलतत्त्व आदि के अधिवासित देव एवं नवग्रह आदि देवों को सम्मान पूर्वक अपने स्थान जाने का निवेदन किया जाता है। इससे सम्यक्त्वी देवी-देवता एवं स्थानीय देव हमेशा प्रसन्न रहते हैं।