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520... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ___यौगिक दृष्टिकोण से शरीर के प्रत्येक स्नायु गुच्छ पर एक चक्र उपस्थित है। उन अनन्त चक्रों में विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ काम करती हैं ऐसा यौगिक अभिमत है। विधि विशेष और भाव के द्वारा विभिन्न प्रकार के न्यासों को बारबार करते रहने से उन चक्रों पर न्यासकर्ता की अंगुलियों से निकले विद्युत प्रवाह द्वारा विशेष कम्पन अथवा चक्रों में सजीवता उत्पन्न हो जाती है और उससे अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर होने के लिए अद्वितीय सहायता प्राप्त होती है। ___तान्त्रिक ग्रन्थों के अनुसार किसी एक मन्त्र को सिद्ध करने से पूर्व सम्पूर्ण विधि-विधान करने में कम से कम एक घण्टे का समय लग जाता है। इससे सुस्पष्ट होता है कि मन्त्रसिद्धि, कार्यसिद्धि एवं आत्मसिद्धि हेतु न्यास एक अनिवार्य क्रिया है।25
प्रतिष्ठा विषयक शंका-समाधान शंका- आसन किसे कहते हैं?
समाधान- प्रतिष्ठा सम्बन्धी क्रियानुष्ठानों में आसन शब्द का प्रयोग बहुलता से देखा जाता है। एक मत के अनुसार आसन का अर्थ 'बैठना' है वहीं दूसरे मत के अनुसार बैठने योग्य स्थान को भी आसन कहा गया है। गणि कल्याणविजयजी ने बैठने योग्य स्थान को आसन कहा है। शिल्प शास्त्र में देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित करने योग्य स्थान के लिए आसन शब्द प्रयुक्त है। कोई भी प्रतिमा पद्मासन में (बैठी हुई) हो अथवा कायोत्सर्ग मुद्रा में (खड़ी हुई) हो, उसे जिस स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाता है उसे आसन, सिंहासन, पबासन आदि कहते हैं। यदि आसन का अर्थ 'बैठना' करें तो ऊर्ध्वस्थित प्रतिमा के लिए विरोध आयेगा, क्योंकि खड़ी प्रतिमा के लिए कोई दूसरा विधान नहीं है।
शंका- अर्वाचीन प्रतिष्ठा की पूजा विधियों में 'सेवंतरां' नाम का प्रयोग पुष्प के लिए होता है। यह सेवंतरां पुष्प क्या है तथा वर्तमान में इस नाम का पुष्प उपलब्ध है या नहीं?
समाधान- विधिकारकों ने जिसे सेवंतरां नाम का पुष्प कहा है उसे आधुनिक युग में गुलाब का पुष्प कहते हैं। गुलाब यह उर्दू शब्द है। संस्कृत में इसका अर्थ 'जलीयपुष्प' होता है। 'सेवंतरां' यह शतपत्र शब्द का अपभ्रंश है। संस्कृत कोश में जलकमल को सहस्रपत्र और स्थलकमल को शतपत्र नाम से