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484... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन अलमारी आदि में या पूजा घर में रखते हैं। यदि आशातना की संभावना हो तो इसे गंगा आदि पवित्र नदियों में जलशरण कर देना चाहिए।
ध्वजा कौन चढ़ाएं?- वर्तमान में प्रतिष्ठा आदि प्रसंगों पर चढ़ावा लेने वाले पुण्यशाली परिवार श्रीसंघ के साथ अत्यंत हर्ष एवं उल्लासपूर्वक ध्वजारोहण करते हैं। यह कार्य साधु-साध्वी हों तो उनके सान्निध्य में अथवा योग्य विधिकारक या श्रावक के मार्गदर्शन में करना चाहिए। वर्षगांठ आदि के दिन चढ़ावा लेने वाले परिवार के द्वारा अथवा जिस संघ में जैसी व्यवस्था हो उसके अनुसार करना चाहिए। परिवार में भी बड़े-बुजुर्गों एवं धर्म रुचि सम्पन्न व्यक्ति से यह कार्य करवाना चाहिए, जिससे वह और भी मंगलकारी हो। ध्वजा को प्रदक्षिणा दिलवाने हेतु सोलह श्रृंगार से युक्त कुंवारी कन्याएँ अथवा सधवा स्त्रियाँ होनी चाहिए। दादा गुरुदेव की ध्वज पूजा में इसका वर्णन करते हुए कहा गया है कि
सज सोलह श्रृंगार सहेल्यां, श्री सद्गुरु के द्वार खड़ी रे। अपछर रूप सुतन सकलिनी, ठम-ठम पग झणकार करी रे। गावत मंगल देत प्रदक्षिणा, धन-धन आनंद आज घड़ी रे ।। ध्वजा बनाने की विधि- दिगम्बर परम्परा के अनुसार ध्वजा बारह अंगुल लम्बी और आठ अंगुल चौड़ी तथा मजबूत और उत्तम वस्त्र की बनानी चाहिए। ध्वजा का कपड़ा सफेद-लाल, सफेद-पीला अथवा सफेद-काला होना चाहिए तथा इसी क्रम के अनुसार रंगवाली ध्वजा तैयार करनी चाहिए। उस ध्वजा में चन्द्रमा, माला, छोटी-छोटी घंटिया, तारा आदि अनेक प्रकार के चित्र बनवाएँ। ध्वजा के ऊपर जिनबिम्ब का आकार बनाएं। उसमें एक छत्र लगाएं। उस ध्वजा में अशोक, चंपा, आम, कदंब, सुपारी आदि के वृक्ष चिह्नित करें। जिस मन्दिर की जितनी ऊँचाई हो उससे चौथाई भाग का ध्वज दंड बनाएँ। नवकार मन्त्र का 108 बार जाप करके ध्वजा को अच्छी तरह दंड में बांधे। फिर ध्वजारोहण मंत्र बोलकर उसे शुभ लग्न में शिखर पर आरोहित करें।
जिन मन्दिर की शोभा ध्वजा से होती है और सभी के लिए शुभकारी भी है इसलिए ध्वजा अवश्य चढ़ानी चाहिए।
ध्वजा की ऊँचाई और उसका फल- पं.आशाधर रचित प्रतिष्ठा सारोद्धार के मतानुसार यदि ध्वजा मन्दिर कलश से एक हाथ ऊँची हो तो संघ को रोग मुक्त करती है, यदि दो हाथ ऊँची हो तो पुत्रादि की वृद्धि होती है, यदि