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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...483 रेशमी वस्त्र की ध्वजा सुखदायक, लक्ष्मीप्रदायक एवं यशकीर्ति वर्धक मानी गई है। साथ ही राजा, प्रजा, बाल, वृद्ध, पशु आदि सभी के लिए समृद्धिकारक होती है।
___ध्वजा दण्ड की पाटली या मर्कटी जिसमें ध्वजा लटकाई जाती है उसके स्वरूप का वर्णन करते हुए प्रासाद मण्डन और कल्याण कलिका में कहा गया है कि ध्वज दण्ड की पाटली या मर्कटी अर्धचन्द्राकार बनानी चाहिए। वह दंड की लम्बाई के छटवें भाग जितनी लम्बी, लम्बाई से आधी चौड़ाई वाली तथा चौड़ाई से तीसरे भाग जितनी मोटाई वाली होनी चाहिए। पाटली का अर्ध चन्द्राकार वाला मुख्य भाग प्रासाद के मुख की दिशा में होना चाहिए और उसके पिछले भाग में ध्वजा लगानी चाहिए। पाटली के कोनों में घंटियाँ तथा ऊपर कलश लगाना चाहिए। वर्तमान में भी ऐसी पाटली ध्वज दंड पर बनाई जाती है।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि पूर्व परम्परा की अपेक्षा आज की ध्वजदंड निर्माण की प्रक्रिया में परिवर्तन आया है, क्योंकि अब पीतल या तांबे के ध्वजदंड बनाए जाते हैं। ____ध्वजारोहण किस दिशा में करें?- शिखर के ऊपरी भाग में ध्वजदंड का आरोपण कर उसमें ध्वजा लगानी चाहिए।
शिल्परत्नाकर के अनुसार ईशान दिशा में ध्वजदंड लगाना चाहिए। इससे राज्य में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि तथा राजा-प्रजा दोनों को आनंद की अनुभूति होती है।10
ध्वजा किन दिनों में चढ़ाई जाए?- सामान्यतया ध्वजदंड और ध्वजा की स्थापना जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के दिन शुभ लग्न में करनी चाहिए। उसके पश्चात प्रतिवर्ष प्रतिष्ठा की वर्षगांठ वाले दिन पुन: नई ध्वजा चढ़ानी चाहिए। यदि किसी कारणवश ध्वजा फट जाए या बदरंग हो जाए तो शीघ्रातिशीघ्र उसका परिवर्तन कर लेना चाहिए, क्योंकि ऐसी ध्वजा अशुभ एवं अमंगलकारी मानी जाती है। कहीं-कहीं तीर्थ स्थानों पर संघपति के द्वारा हर्ष अभिव्यक्ति एवं धर्मप्रभावना हेतु भी नूतन ध्वजा चढ़ाई जाती है।
कई लोग प्रश्न करते हैं कि जो पुरानी ध्वजा उतारी जाती है उसका क्या करना चाहिए?
पुरानी ध्वजा को पूजनीय एवं मंगलकारी मानकर कुछ लोग उसे अपनी