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अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ...465 जीवनप्रद माना जाता है। इस औषधि की महक से दूषित वातावरण पवित्र बनता है।
4. जीवक- यह औषधि बलकारक और दाहज्वरनाशक है।
5. ऋषभक- इस औषधि को बलदायक, पुष्टिकारक, मधुर एवं शीतल माना गया है। ___6. नखी एवं महानखी- दोनों औषधियाँ भूत विद्रावक, सुगंधदायक और बुद्धि की अभिवर्धक कही गई हैं।
7. ऋद्धि- यह मधुर, मेघाजनक, शीतल और प्राणदायक है।
इस प्रकार द्वितीय अष्टक वर्ग की औषधियों के प्रयोग से जिनालय का संपूर्ण वातावरण सुगंधित, शीतल एवं रोगमुक्त बनता है। इससे व्यन्तरादि उपद्रवों का भी निराकरण हो जाता है। दसवाँ अभिषेक
यह अभिषेक सर्वौषधि वर्ग से किया जाता है। इस सर्वौषधि में हरिद्रा, वचा, सौंफ, वालक, मोथ, ग्रन्थिपर्णक, प्रियंगु, मुखवास, कयूंरक, कुष्ट, इलायची, तज, तमालपत्र, नागकेसर, लवंग, कंकोल, जातिफल, जातिपत्रिका, नख, चन्दन, सिल्हक आदि चूर्णो का मिश्रण करते हैं।
1. हरिद्रा (हल्दी)- आयुर्वेदिक शास्त्र के अनुसार हल्दी चरपरी, कड़वी एवं सौन्दर्यवर्धक है। इससे प्रतिमा के तेज में निखार आता है।
2. मोथ (मोथा)- यह वनस्पति शीतल, कड़वी, पाचक, कृमिनाशक तथा तृषा, ज्वर आदि के निवारण में लाभदायक है। इस औषधि चूर्ण की सुगंध से वातावरण में अहिंसादि भावों का प्रसरण होता है।
3. ग्रन्थिपर्णक- यह औषधि कड़वी, बलदायक, कामोत्तेजक, हड्डी जोड़ने में लाभकारी और कांतिजनक है। इसके संयोग से प्रतिमा में अपूर्व कांति का वर्धन होता है। ___4. कचुरक (कचूर)- आयुर्वेद के अनुसार यह औषध कड़वा, सुगंधित
और खांसी, श्वास, वायु, क्षय रोग आदि को दूर करने वाला माना गया है। ____5. इलायची- यह शीतल, तीक्ष्ण, कड़वी, सुगंधित और आफरा दूर करने में समर्थ है। इससे वातावरण सुगंधित बनता है।
6. तमालपत्र (तेजपा)- इस औषधि के प्रयोग द्वारा किसी भी प्रकार के अमांगलिक कार्य से बचा जा सकता है।