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अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ...467 कांतिवर्धक, उज्ज्वलता कारक, मंगल एवं सुगंधदायक है। इससे वातावरण शांत एवं मनमोहक बनता है।
2. कर्पूर (कपूर)- कपूर एक मंगलकारी, दुर्गंधनाशक, नेत्र हितकारी, मधुर और हल्की वनस्पति है। इससे वातावरण विकार रहित होता है। तेरहवाँ अभिषेक ... तेरहवाँ अभिषेक वास स्नात्र का किया जाता है। वास एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य है। यह मुख्यतया दुर्गंध का निवारण कर मस्तक, नेत्र, स्वरभंग आदि से सम्बन्धित रोगों का शमन करता है। इससे भी प्रतिमा के तेज में निखार आता है। चौदहवाँ अभिषेक
चौदहवाँ अभिषेक चन्दन स्नात्र कहलाता है। इसमें चन्दन मिश्रित जल का प्रयोग करते हैं। इसके प्रयोग से प्रतिमा की कलुषिता एवं दुर्गंधमय वातावरण दूर होता है। पन्द्रहवाँ अभिषेक
पन्द्रहवाँ अभिषेक कुंकुम स्नात्र कहलाता है। कुंकुम (रोली) सुगंध देता है, विकारों का नाश करता है और वर्ण को उज्ज्वल करता है। सोलहवाँ अभिषेक
सोलहवाँ अभिषेक तीर्थोदक नाम से जाना जाता है। इसमें विविध तीर्थों के जल द्वारा अभिषेक करते हैं। तीर्थ जलों को पवित्र, शुद्ध एवं कल्याणकारी माना गया है। विविध तीर्थों के जल का उपयोग करने से जिनालय में एक पवित्र ऊर्जा का निर्माण होता है। सतरहवाँ अभिषेक
सतरहवाँ अभिषेक कर्पूर स्नात्र कहलाता है। इस अभिषेक जल में चन्द्र और बर्फ के समान सफेद एवं उत्तम गंधवाले कपूर को पवित्र तीर्थ जलों में मिश्रित किया जाता है इसके द्वारा जिन प्रतिमा की सुगंध एवं शीतलता में वृद्धि होती है। अठारहवाँ अभिषेक
यह अभिषेक 108 शुद्ध जलों के द्वारा किया जाता है। इस अभिषेक का