________________
अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ... 469
नाम एवं क्रम की दृष्टि से - सुबोधासामाचारी 10 एवं विधिमार्गप्रपा'1 में 18 अभिषेकों के नाम एवं क्रम इस प्रकार हैं
1. हिरण्य स्नात्र 2. पंचरत्न 3. कषाय 4 मंगल मृत्तिका 5. पंचगव्य 6. सदौषधि 7. मूलिका वर्ग 8. प्रथम अष्टक वर्ग 9. द्वितीय अष्टक वर्ग 10. सर्वौषधि 11. कुसुम 12. गन्ध 13. वास 14. चन्दन 15. कुंकुम 16. तीर्थोदक 17. कर्पूर 18. पुष्पांजलि क्षेपण।
• आचार दिनकर 12 में 21 अभिषेकों का वर्णन प्राप्त होता है । उनके नाम एवं क्रम निम्न प्रकार से हैं
1. हिरण्योदक स्नात्र 2. पंचरत्न 3. कषाय 4 मंगलमृत्तिका 5. पंचगव्य 6. सदौषधि 7. मूलिका वर्ग 8. प्रथम अष्टक वर्ग 9. द्वितीय अष्टक वर्ग 10. सर्वौषधि 11. सदौषधि 12. मूलिका वर्ग 13. सदौषधि 14. कुसुम 15. गन्ध 16. वास 17. चंदन 18. कुंकुम 19. तीर्थोदक 20. कर्पूर 21. एक सौ आठ मिट्टी के कलशों के जल द्वारा।
• गणि सकलचन्द्रकृत प्रतिष्ठा कल्प 13 में 18 अभिषेकों के नाम-क्रम निम्न हैं
1. हिरण्योदक 2. पंचरत्न 3. कषाय 4. मंगलमृत्तिका 5. सदौषधि 6. प्रथम अष्टक वर्ग 7. द्वितीय अष्टक वर्ग 8. सर्वौषधि 9. पंचगण्य 10. सुगंधौषधि 11. पुष्प 12. गन्ध 13. वास 14. चन्दन 15. कुंकुम 16. तीर्थोदक 17. कर्पूर 18. केशर-चन्दन- पुष्प एवं कुसुमाञ्जलि |
• परवर्ती कल्याण कलिका में एवं जिनबिंब प्रवेश प्रतिष्ठा विधि समुच्चय आदि संकलित कृतियों में 18 अभिषेकों की विधि श्रीचन्द्रसूरि एवं जिनप्रभसूरि की प्रतिष्ठा पद्धति के अनुसार कही गई है। वर्तमान परम्परा की संकलित प्रतियों में यह विधि गणि सकलचन्द्र के मतानुसार दी गई है । आजकल के विधिकारक प्रायः गणि सकलचन्द्र की प्रतिष्ठा पद्धति के आधार पर यह अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं।
परमार्थतः यह अभिषेक विधि सुबोधासामाचारी के अनुसार करवायी जानी
चाहिए।
कलश संख्या की दृष्टि से सुबोधासामाचारी, आचारदिनकर, विधिमार्गप्रपा आदि पूर्ववर्ती प्रतिष्ठा कल्पों में स्नात्रकार एवं कलशों की एक