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462... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
इसी तरह बला, गुहा, सिंही आदि औषधियाँ भी पूर्वोक्त गुणों से युक्त हैं। इन औषधियों के सम्मिश्रित जल द्वारा अभिषेक करने पर प्रतिमाओं की चमक एवं नेत्रों के तेज में वृद्धि होती है।
सातवाँ अभिषेक
सातवाँ स्नात्र मूलिकावर्ग की औषधियों के द्वारा किया जाता है। मूलिकावर्ग में मयूरशिखा, विरहक, अंकोल, लक्ष्मणा, शंखपुष्पी, शरपुंखा, विष्णुक्रान्ता, चक्रांका, सर्पाक्षी और महानीली आदि औषधियों का समावेश होता है।
1. मयूरशिखा ( मोरशिखा, मोरपंखी ) - लोकव्यवहार में मयूरशिखा को ग्रहपीड़ा निवारक एवं वशीकरण आदि में उपयोगी मानते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह शीतल, हल्का, पित्त-कफ- अतिसार में लाभदायक तथा त्वचारोग, ज्वर, मधुमेह आदि में फायदा करता है। इससे प्रतिमा में अशुभ शक्तियों आदि का वास नहीं होता। यह प्रतिमा की शीतलता में वृद्धि करते हुए भक्तजनों को मानसिक प्रसन्नता देता है एवं उनके ग्रह - उपद्रव आदि को भी शांत करता है ।
2. अंकोल - निघण्टु रत्नाकर के अनुसार यह औषध कड़वा, हल्का, चिकना, गरम और कसैला होता है। यह कांतिजनक, विषनाशक, पिशाच आदि ऊपरी प्रभाव एवं ग्रह पीड़ा नाशक भी है। इसका उपयोग नजर आदि उतारने में भी किया जा सकता है। इससे जिनबिंब के तेज एवं कांति में वृद्धि होती है तथा बाह्य उपद्रव नहीं होते। यह दर्शनार्थियों की पीड़ा आदि का नाश कर शान्ति प्रदान करता है।
3. लक्ष्मणा - लक्ष्मणा को पुत्रदा के नाम से जाना जाता है। यह मधुर, शीतल, त्रिदोषनाशक, वन्ध्यत्व निवारक, विष एवं बाधा हारक है। इससे प्रतिमा के अतिशयों में वृद्धि होती है।
4. शंखपुष्पी (शंखावली ) - यह औषधि शीतल, बुद्धि, कान्ति, आयु, बल एवं स्मरणशक्ति को बढ़ाने वाली, अवस्था स्थापक, मंगलकारक तथा विष-कोढ़-कृमि का नाश करने वाली मानी गई है। इससे प्रतिमा का प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता है।
5. शरपुंखा (सरपंखा ) - आयुर्वेद शास्त्रज्ञों के मत से शरपुंखा कड़वी, गरम, कसैली और हल्की होती है। यह रक्तविकार, हृदयरोग, ज्वर, कफ, कुष्ट