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290... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
शिला को ढक्कन रूप में रखें, जिससे कूर्म के ऊपर भार नहीं आए और वह मध्य के पोलापन भाग में रह सके।
शुभ मुहूर्त्त में शिलाओं की प्रतिष्ठा करने के पश्चात उन्हें हिलाए - डुलाए नहीं, क्योंकि चलित करने पर गृह स्वामी और शिल्पी दोनों के लिए अशुभ फलदायक होता है। इस सम्बन्ध में शास्त्र वचन है कि अग्निकोण में प्रतिष्ठित शिला को चलायमान करने पर गृह स्वामी को भय, नैर्ऋत्य कोण की शिला को चलित करने पर गृहस्वामी के स्त्री की मृत्यु, वायव्य कोण की शिला को चलित करने पर शून्यता एवं भय, ईशान दिशा और मध्य स्थित शिला को कंपित करने पर गुरु को भय उत्पन्न करता है । इसी प्रकार प्रथम विधि पूर्वक प्रतिष्ठित स्तम्भों को भी अपने स्थान से विचलित करने पर अशुभ फल होता है। ।। इति शिलास्थापना विधि ।।
कुंभस्थापना विधि
वर्तमान परम्परा में प्रचलित कुंभ स्थापना विधि इस प्रकार है
• उत्सव के प्रथम दिन अथवा पाँच-सात दिन पहले कुंभ चक्र और चन्द्र बलवान हो ऐसा शुभ दिन देखकर कुंभ स्थापना करें।
• प्रतिष्ठा के समय कुंभ स्थापना दो जगहों पर की जाती है। पहली मुख्य जिनालय में बिम्ब के दायीं ओर तथा दूसरी जिस मंडप में अधिवासना, अंजनशलाका आदि अनुष्ठानों के लिए स्थापनीय बिंब विराजमान किये गये हों वहाँ बिम्ब के दाहिनी तरफ करते हैं।
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कुंभ मिट्टी का हो, काला दाग से रहित हो और सुन्दर आकार वाला होना चाहिए।
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कुंभ को धोकर उसके ऊपर बाहर में अष्ट मंगल आदि के मांगलिक चित्र बनवाएं। कंठ में ग्रीवा सूत्र (मौली) बाँधे ।
फिर जिस जगह पर कुंभ की स्थापना करनी हो वहाँ कुंवारी कन्या अथवा सधवा नारी के हाथ से कंकु का स्वस्तिक करवाकर उसके ऊपर सवा सेर जौ और जुवार का स्वस्तिक करवायें।
• तदनन्तर कुंभ के अन्दर केशर का स्वस्तिक करवायें।
• फिर कुंभ के बाह्य भाग में चारों तरफ केशर से अनार की लेखनी के द्वारा 'ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा' - यह मंत्र लिखवायें।