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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...413
वज्रलेप विधि वज्र अर्थात कठोर, प्रगाढ़, तीक्ष्ण, लेप अर्थात लिंपन करना। किसी सुदृढ़ वस्तु का लेप करना वज्रलेप कहलाता है। प्राचीन युग में मंदिर, मकान आदि को मजबूत करने के लिए भींत आदि के ऊपर लेप किया जाता था, इसे ही वज्रलेप कहा गया है। ___ प्रस्तुत सन्दर्भ में देवालयों एवं प्रतिमाओं को जर्जरित होने से बचाना आवश्यक है। यदि प्रतिमा खंडित हो जाए अथवा उसके अंग-उपांग घिस जाये तो उसकी पूज्यता समाप्त हो जाती है ऐसी स्थिति में प्रतिमा की अखण्डता को बनाये रखने के उद्देश्य से वज्रलेप किया जाता है। वज्रलेप करने से त्रुटित एवं जर्जरित स्थान ठीक हो जाते हैं। - वर्तमान में अधिकांशतः प्रतिमाओं का लेप ही देखा जाता है। यह वज्रलेप सिर्फ अखण्डित प्रतिमा पर ही चढ़ायें, खण्डित प्रतिमा पूजा योग्य न होने से संस्कार योग्य नहीं होती है। वज्रलेप निर्माण की विधि ___ शिल्प ग्रन्थों में वज्रपेल तैयार करने की दो विधियाँ प्राप्त होती है। प्रथम विधि के अनुसार कच्चा तेंदुफल, कच्चा कैंथ फल, सेमल के फूल, शाल वृक्ष के बीज, धामन वृक्ष की छाल और घोड़ावच- इन औषधियों को एक समान परिमाण में एकत्रित करें। फिर उन्हें 1024 तोला पानी में डालकर उकालें। जब पानी का आठवां हिस्सा शेष रह जाये तब उसे नीचे उतारकर उसमें श्री वसक वृक्ष का गोंद, हीराबोल, गुगल, भिलवा, देवदार, कुंदरू, राल, अलसी और बिल्व- इन औषधियों का चूर्ण बराबर मात्रा में डालें। उसके बाद खूब हिलाने पर वज्रलेप तैयार होता है।53 . दूसरी विधि के अनुसार लाख, देवदारू का गुन्द, गुगल, हलदर, बिल्व, नागबला, नीम, टिम्बरू का फल, मीढल, जेठीमध, मजीठ, राल, हीराबोल
और आवलां- इन औषधियों को एक समान परिमाण में संग्रहित कर 1024 तोला पानी में उकालें। जब पानी का आठवाँ हिस्सा बच जाये तब नीचे उतारने पर वज्रलेप तैयार हो जाता है।54 वज्रलेप करने की विधि
वज्रलेप तैयार हो जाने पर प्रतिमा आदि के जीर्ण स्थानों पर गरम-गरम ही लगायें। गरम लेप ही असर कारक होता है।55