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450... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
• अभिषेक एक शाश्वत परम्परा है। बारह देवलोकों के सौधर्म आदि इन्द्र प्रत्येक कालचक्र में होने वाले तीर्थंकरों का जन्म कल्याणक मनाने हेतु नन्दीश्वर द्वीप जाकर अट्ठाई महोत्सव, शाश्वत चैत्यों का अभिषेक आदि करते हैं तब सामान्य मनुष्य को तो परमात्मा भक्ति करनी ही चाहिए।
• अठारह अभिषेक का मुख्य हेतु यह भी ज्ञात होता है कि इससे विधेयात्मक ऊर्जा एवं शुद्ध परमाणुओं की प्राप्ति होती है, अध्यवसायों की निर्मलता बढ़ती है तथा जीवन सार्थक होता है।
अठारह अभिषेक कब किए जाएं? ___अठारह अभिषेक का यह विधान नव निर्मित जिनालय की प्रतिष्ठा के अवसर पर अथवा जिनबिंब संबंधी हुई आशातनाओं को दूर करने के प्रसंग पर किया जाता है। वर्तमान में बढ़ रही शारीरिक आदि आशातनाओं का निवारण करने के लिए अधिकतम स्थानों पर वर्ष में प्राय: एक बार अठारह अभिषेक किया जाने लगा है।
यह एक शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। वर्तमान में मुख्यत: ध्वजदंड, कलश, जिनबिम्ब, देवी-देवताओं की प्रतिमा, गुरु मूर्ति, सिद्धाचल आदि के पट्ट, स्थापनाचार्यजी, मंगल मूर्ति, गृह मन्दिर में दर्शनीय प्रतिमा आदि का अभिषेक किया जाता है। अठारह अभिषेक का अधिकारी कौन?
यह क्रिया गुरु भगवन्त हो तो उनकी निश्रा में एवं विधिकारक के निर्देशन में श्रावक-श्राविकाओं के द्वारा मिलकर सम्पन्न की जाती है। औषधि आदि घोटने का कार्य सुहागन महिलाओं के द्वारा करवाया जाता है। अभिषेक कर्ता क्या भावना करें? . • अभिषेक करते हुए स्नात्रकार को द्रव्य से जिन प्रतिमा की शुद्धि एवं भावों से निज आत्मशुद्धि की भावना करनी चाहिए।
इस अन्तर्भावना से निवेदन करे कि हे परमात्मन्! आपका ज्ञान रूपी जल जो समत्त्व रस से भरपूर है उससे मेरा अन्तर घट भी समता रस से पूरित हो।
• हे भगवन्! मेरे द्वारा किसी भी प्रकार की आशातना हुई हो तो इस जलाभिषेक के द्वारा उन दोषों को दूर करता हूँ।