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अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ...459 नेत्र रोग एवं सभी प्रकार के विष को दूर करने में विशेष सहायक है। इसके संयोग से जिनबिंब पर किसी भी प्रकार का दाग आदि हो तो मिट जाता है।
वल्कल (बड़)- इस वृक्ष के गुणों की चर्चा करते हुए वनस्पति शास्त्रियों ने कहा है कि इसका प्रत्येक भाग उपयोगी है। यह शूल विनाशक, कान्तिवर्धक एवं शारीरिक विकारों का नाश करनेवाला है। इससे पत्थर के भीतर के विकार दूर होते हैं तथा प्रतिमा के तेज में वृद्धि होती है।
इस भाँति उपर्युक्त उदुम्बर आदि वृक्षों की छाल मुख्यत: कड़वी और दोष विनाशक गुणवाली है इसलिए इन औषधियों के चूर्ण को कषाय चूर्ण कहा जाता है। इन औषधियों के प्रभाव से अभिषेककर्ता एवं दर्शकों के कषाय रंजित भाव विनष्ट हो जाते हैं। चौथा अभिषेक
चौथे अभिषेक में आठ प्रकार की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी पृथ्वी का प्रधान तत्त्व है। प्राकृतिक दृष्टि से इसमें अनेक गुण होते हैं तथा विविध प्रकार की मिट्टियाँ विभिन्न विशेषताओं से परिपूर्ण हैं। ।
1. हाथी के सूंड द्वारा निकाली गई मिट्टी अधिक गहराई वाली होने से दूषित वातावरण एवं बाह्य कल्मषों को दूर करती है। यह पवित्र होने से शीघ्र प्रभावी तथा बाह्य विकारों को समाप्त करती है। ___2. वृषभ के सींगों द्वारा खोदकर निकाली मिट्टी भी पूर्वगुणों से युक्त होती है। वृषभ एक स्थान को बार-बार खोदता है इससे ऊपरी दूषित मिट्टी दूर हो जाती है। वृषभ वीर्य, पराक्रम एवं पुरुषार्थ का सूचक है, अत: अभिषेक कर्ता के मन को सम्यक पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है। ___3. पर्वत स्थानों की मिट्टी स्वयं में कई गुणों से युक्त है। यह अपेक्षाकृत शुद्ध और कान्तिवर्धक मानी गई है। इसमें क्षार की मात्रा कम होती है।
4. तीर्थस्थलों की मिट्टी पवित्र परमाणुओं से ओत-प्रोत एवं महाप्रभावी होती है। इस मिट्टी के प्रयोग से तीर्थ अधिष्ठायक देवी-देवता की अनुकंपा भी प्राप्त होती है।
5. दो नदियों के संगम स्थल की मिट्टी मिश्रित जल के संयोग से जिन प्रतिमाएँ अनेक विशेषताओं से युक्त होती है। दूसरे, संगम स्थानों को आदरणीय माना गया है।