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456... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
को समाप्त किया जाता है। इससे पारस्परिक स्नेह में अभिवृद्धि एवं सामाजिक संबंधों में दृढ़ता भी आती है। ___यदि आध्यात्मिक दृष्टि से अनुशीलन किया जाए तो इस धर्म क्रिया द्वारा आन्तरिक निर्मलता बढ़ती है, जो कर्मक्षय एवं आत्मशुद्धि में परम सहायक है। इस आराधना के माध्यम से सकल संघ आध्यात्मिक ऊँचाइयों को प्राप्त करता है।
आधुनिक युग की समस्याओं के सन्दर्भ में सोचें तो इस अभिषेक के द्वारा कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। सर्वप्रथम वातावरण में विद्यमान दोष दूर होते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषण एवं उनसे होने वाले रोगों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इसके द्वारा आयुर्वेद सम्बन्धी विविध औषधियों का ज्ञान होने से वे कई दृष्टियों से लाभकारी बन सकती हैं।
इससे समाज में एकता एवं समन्वय की स्थापना होती है जिससे सामाजिक मतभेद एवं मनभेद समाप्त होते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी जिनाभिषेक का प्रभाव सुसिद्ध हो चुका है। जब धातु की प्रतिमा पर प्रासुक जल की धारा प्रवाहित करते हैं तो धातु के सम्पर्क से जल का आयनीकरण होता है जिसके फलस्वरूप निकलने वाले ऋण आयनों को शरीर ग्रहण करता है जो शरीर में स्थित हीमोग्लोबिन में वृद्धि करते हैं।
ऊर्जा विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि जिस भावना से प्रेरित होकर हम कार्य करते हैं, वहाँ का वायुमण्डल भी हमारी आभामण्डल के द्वारा निकलने वाली किरणों से वैसा ही हो जाता है। वहाँ उपस्थित अन्य लोगों पर
भी उसका वैसा ही प्रभाव पड़ता है। शुभ भावों के द्वारा हमारा आभामण्डल विधेयात्मक (पोजिटिव) बनता है, जिससे कार्य सिद्धि शीघ्र होती है एवं अन्यों से भी अपना कार्य करवा सकते हैं। अठारह अभिषेकों में प्रयुक्त औषधियों का महत्त्व एवं रहस्य . जैन परम्परा से सम्बन्धित प्रत्येक विधि-विधान स्वयं में अनेक रहस्यों एवं विशिष्टताओं से युक्त है। अठारह अभिषेकों में प्रयुक्त औषधियाँ जिन बिंब, जिनालय और स्नातकर्ता पर अद्भुत प्रभाव डालती हैं। पहला अभिषेक
प्रथम हिरण्योदक स्नात्र में स्वर्ण चूर्ण से मिश्रित जल का प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार स्वर्ण का प्रयोग पवित्र, नेत्र हितकारी,