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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...421 उस दिन कौटुम्बिक जन यथाशक्ति साधर्मिक वात्सल्य करें और संघ पूजा
करें।62
॥ इति पितृमूर्ति प्रतिष्ठा विधि ।।।
चतुर्निकाय देव मूर्ति प्रतिष्ठा विधि देव चार प्रकार के होते हैं- 1. भवनपति 2. व्यन्तर 3. ज्योतिष और 4. वैमानिक। इनमें 10 प्रकार के भवनपति देव, 20 भवनपति देवों के इन्द्र, 16 प्रकार के व्यन्तर देव, 32 प्रकार के व्यन्तर देवों के इन्द्र, 12 देवलोक, 9 ग्रैवेयक, 5 अनुत्तर विमानवासी देव और 12 कल्पोपपन्न देवों के दस इन्द्रइन सभी देवों की प्रतिमाएँ उनके वर्ण के अनुसार काष्ठमयी, धातुमयी और रत्न घड़ित होनी चाहिए।
आचार दिनकर के अनुसार देव मूर्तियों की प्रतिष्ठा विधि निम्न प्रकार है
• सर्वप्रथम चैत्य में या गृह में बृहत्स्नात्र विधि द्वारा अरिहन्त परमात्मा की स्नात्र पूजा करें। तत्पश्चात मिश्रित पंचामृत द्वारा देवों की प्रतिमाओं को स्नान कराएं, फिर शुद्ध जल से प्रक्षालित करें।
• उसके पश्चात यक्षकर्दम का लेप करें, धूप उत्क्षेपण करें तथा पुष्प आदि से पूजा करें।
• तदनन्तर पच्चीस प्रकार के द्रव्यों से निर्मित वासचूर्ण को निम्न प्रतिष्ठा मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार डालें। इससे देव मूर्तियों की प्रतिष्ठा हो जाती है।
प्रतिष्ठा मंत्र यह है- ॐ हीं श्रीं क्लीं क्लूं कुरु-कुरु, तुरु-तुरु, कुलु-कुलु, चुरू-चुरू, चुलु-चुलु, चिरि-चिरि, चिलि-चिलि, किरिकिरि, किलि-किलि, हर-हर, सर-सर, हूं सर्व देवेभ्यो नमः अमुक निकाय मध्यगत, अमुक जातीय, अमुक पद, अमुक व्यापार, अमुक देव इह मूर्ति स्थापनायां, अवतर-अवतर, तिष्ठ-तिष्ठ, चिर पूजकदत्तां पूजां गृहाण-गृहाण स्वाहा।
स्पष्टीकरण- 1. मंत्र में 'निकाय' के स्थान पर प्रतिष्ठाप्य देव भुवनपति, व्यंतर या वैमानिक आदि जिस निकाय के हो उसका नाम बोलें।
2. 'जाति' के स्थान पर भवनपतियों में असुर कुमारादि, व्यन्तरों में भूतपिशाचादि, वैमानिकों में सौधर्म इन्द्रादि शब्द बोलें।