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420... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन बार बोलते हुए वासक्षेप पूर्वक करें
ॐ नमो उवज्झायाणं भगवंताणं बारसंगपढग-पाढगाणं सुअहराणं सज्झायज्झाणसत्ताणं इह उवज्झाया भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणी सावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्व सिद्धिं दिसन्तु स्वाहा। __ • शुभ वेला में साधु मूर्ति या स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र को तीन बार कहते हुए वासक्षेप पूर्वक करें
ॐ नमो सव्व साहूणं भगवंताणं पंचमहव्वयधराणं पंच समियाणं तिगुत्ताणं तव-नियम-नाण-दसण जुत्ताणं मुक्खसाहगाणं इह साहुणो भगवंतो अवयरंतु साहुसाहुणी सावयसावियाकयं पूअं पडिच्छन्तु सव्वसिद्धिं दिसन्तु स्वाहा।
।। इति साधु मूर्ति प्रतिष्ठा विधि ।।
पितृ मूर्ति प्रतिष्ठा विधि गृहस्थों के पूर्वजों की पाषाणमयी मूर्तियाँ अधिकांश प्रासाद में स्थापित की जाती है तथा गृह में पूजा के लिए स्थापित की जाने वाली गृहस्थों की पितृ मूर्ति धातु की या पट्ट पर आलेखित होती है। गले में पहनने योग्य पुष्प आदि के रूप में नामांकित पितृ मूर्तियाँ भी होती है। इन सभी पितृ मूर्तियों की प्रतिष्ठा विधि एक समान है।
पितृमूर्ति की प्रतिष्ठा के लिए सर्वप्रथम पूर्व प्रतिष्ठित जिनबिम्ब की बृहत्स्नात्र विधि करें। फिर उस स्नात्र जल से मिश्रित पंचामृत द्वारा तीनों प्रकार की पित मूर्तियों को स्नान कराएँ। फिर शुद्ध जल से प्रक्षालित कर उसे पौंछे।
तत्पश्चात शुभ लग्न में पितृ मूर्ति की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेप पूर्वक करें_____ॐ नमो भगवओ अरहओ जिणस्स महाबलस्स महाणुभावस्स सिवगइगयस्स सिद्धस्स बुद्धस्स अक्खलिअप भावस्स तद्भक्तोऽमुकवर्णः, अमुक जातीयः, अमुक गोत्रः, अमुक पौत्रः, अमुक पुत्रः, अमुक जनकः इह मूर्ती अवतरतु-अवतरतु संनिहितः तिष्ठतु-तिष्ठतु निज कुल्यानां पुत्र भातृव्यपौत्रादीनां जिन भक्ति पूर्वकं दत्तमाहारं वस्त्रं पुण्यकर्म प्रतीच्छतु शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं समीहितं करोतु स्वाहा।