________________
प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...429 क्योंकि इससे चोरी का दोष लगता है। यदि भूमि या जल आदि का अधिपति देव मिथ्यात्वी हो तो उससे बिना पूछे उसकी अधिकृत वस्तु लेने पर वह किसी प्रकार का विघ्न या संकट उपस्थित कर सकता है इसलिए वापी आदि जलाशय की प्रतिष्ठा अनिवार्य है।
आचार दिनकर के अनुसार जलाशय प्रतिष्ठा की विधि इस प्रकार है
• प्रतिष्ठा के दिन जलाशय करवाने वाला स्वयं के घर में शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म करें। फिर सर्व उपकरण लेकर जलाशय पर जाएं। वहाँ जलाशय के चारों ओर चौबीस तन्तुओं से गर्भित सूत्र को बांधकर उसकी रक्षा करें।
• तत्पश्चात जिनबिम्ब को स्थापित करके बृहत्स्नात्र विधि से स्नात्र पूजा करें। उसके बाद जलाशय में पंचगव्य एवं जिन स्नात्र का जल डालें।
.फिर जलाशय के अग्रभाग में लघु नंद्यावर्त की स्थापना करें, किन्तु नन्द्यावर्त मंडल के मध्य भाग में वरुण की स्थापना करें और उन सभी की पूजा पूर्ववत करें। वरुण देवता की विशेष रूप से तीन बार पूजा करें।
• तदनन्तर त्रिकोण अग्निकुंड में घी, मधु, खीर एवं नाना प्रकार के सूखे फलों द्वारा तथा नंद्यावर्त्त-मंडल में स्थापित देवताओं के नाम स्मरण पूर्वक प्रणाम करते हुए प्रत्येक देवता सम्बन्धी मंत्र के अन्त में 'स्वाहा' बोलकर आहुति दें। फिर शेष आहुति एवं जल को जलाशय में डाल दें।
• उसके पश्चात प्रतिष्ठाचार्य पंचामृत के कलशों को हाथ में लेकर उस जलाशय के मध्य में धारा डालते हुए निम्न मंत्र सात बार बोलें
ॐ वं वं वं वं वं वलिप् वलिप् नमो वरुणाय समुद्रनिलयाय मत्स्यवाहनाय नीलाम्बराय अत्र जले जलाशये वा अवतर-अवतर सर्व दोषान् हर-हर स्थिरी भव-स्थिरी भव ॐ अमृतनाथाय नमः।
• फिर इसी मंत्र का स्मरण कर जलाशय में पंच रत्नों का निक्षेप करें और वासचूर्ण डालें।
• उसके बाद जलाशय के देहली, स्तम्भ, भित्ति, द्वार, छत एवं आंगन की प्रतिष्ठा गृह प्रतिष्ठा में कहे गये मंत्रों पूर्वक करें।
• प्रतिष्ठा करने से पूर्व जलाशय के समीप में प्रतिष्ठा सूचक यूप स्तम्भ को 'ॐ स्थिरायै नमः' इस मंत्र से स्थापित करें।