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366... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
ॐ नमो खीरासवलद्धीणं, ॐ नमो महुआसवलद्धीणं ॐ नमो संभिन्नसोईणं ॐ नमो पयाणुसारीणं ॐ नमो कुट्ठबुद्धीणं जमियं विज्ज पउंजामि सा में विज्जा पसिज्जउ, ॐ अवतर-अवतर सोमे-सोमे, ॐ वग्गु-वग्गु ॐ निवग्गु-निवग्गु सुमणसे- सोमणसे महुमहुरे कविल ॐ कक्षः स्वाहा। अथवा ॐ नमः शान्तये हूं हूं हूँ सः।
• फिर 1.शालि (चावल) 2.यव (जौ) 3. गोधूम 4. मुद्ग (मूंग) 5. वल्ल (वाल) 6. चणक (चना) और 7. चवलक (चवला)- इन सात धान्यों में पुष्पों का मिश्रण कर एवं उससे अंजलि भरकर बिम्ब को स्नान करवाएं। सप्तधान्य से स्नान कराने का छंद निम्न हैं
सर्वप्राणसमं सर्व धारणं सर्वजीवनम् । __ अजीव जीव दानाय, भवत्वनं महार्चने ।। • फिर सभी जगह पुष्प चढ़ाएं एवं धूप उत्क्षेपण करें। धूपोत्क्षेपण का छंद यह है
ऊर्ध्वगतिदर्शनालोक, दर्शितानन्तरोज़ गति दानः ।
धूपो वनस्पतिरसः, प्रीणयतु समस्त सुरवृन्दम् ।। • तदनन्तर पुत्रवान चार अथवा चार से अधिक सधवा स्त्रियाँ निरंछनविधि करें अर्थात प्राण प्रतिष्ठित जिनबिम्ब को बधाएं। यथाशक्ति स्वर्ण का दान करें। फिर बिम्ब के आगे प्रचुर मात्रा में मोदक एवं पकवान चढ़ाएं।
• तत्पश्चात श्रावकजन आरती उतारें और मंगल दीपक करें। फिर आचार्य चैत्यवंदन करें। इसी क्रम में अधिवासना देवी की आराधना निमित्त एक लोगस्ससूत्र का चिन्तन कर निम्न स्तुति कहें
विश्वाशेषेशुवस्तुषु, मन्त्रैर्याजस्त्रमधि वसति वसतौ । सेमामवतरतु श्री, जिनतनुमधिवासना देवी ।।
अथवा पातालमन्तरिक्षं भवनं, वा या समाश्रिता नित्यम् ।
सात्रावतरतु जैनी, प्रतिमामधिवासना देवी ।। उसके बाद श्रुतदेवी, शान्ति देवता, अम्बिका देवी, क्षेत्र देवता, शासन देवी और सर्व वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए पूर्ववत कायोत्सर्ग कर
स्तुतियाँ बोलें।