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388... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
आलेखन विधि - किसी भी यन्त्र का निर्माण निर्जन स्थान में शुद्ध भूमि पर करना चाहिए। वहाँ पीठ (वेदी) की स्थापना करके उसके ऊपर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। पीठ के नीचे एक कुंकुम का और दूसरा अक्षत का स्वस्तिक करना चाहिए। स्वस्तिक के आगे नारियल और सुपारी रखकर उन पर चाँदी का सिक्का रखें।
तदनन्तर यंत्र स्थित देव-देवी की स्थापना करें। फिर शुभ मुहूर्त में मन को एकाग्र चित्त करते हुए, धूप और दीपक के प्रज्वलन पूर्वक चन्द्र स्वर चल रहा हो उस समय यन्त्र लेखन प्रारम्भ करें।
यन्त्र का निर्माण सुवर्ण, चाँदी, तांबा, भोजपत्र अथवा वस्त्र पर करें। 25 विधिमार्गप्रपा के अनुसार मूलनायक प्रतिमा के नीचे जिस धातु का यंत्र रखना हो उसे चौकोर एवं चिकना बनायें। फिर दूध और जल से उसका स्नान करें। फिर सुगन्धित द्रव्यों से मिश्रित चन्दन का उस पर लेप करें। उसके पश्चात श्रेष्ठ पुष्प, अक्षत, नैवेद्य, धूप, दीपक आदि अर्पित करते हुए यंत्र की पूजा करें। उसके बाद यन्त्र के सम्मुख एक सौ आठ बार जाप करें।
तत्पश्चात यन्त्र के मध्य में पद्माकार पीठ पर मातृका वर्ण “ ॐ अर्हम् अ आ इ ई से लेकर श ष स ह यावत् तथा ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं स्वाहा” लिखें। उसके बाद यन्त्र के ऊपर कपूर, कुंकुम, गन्ध, पारा और पंचरत्न का निक्षेपण करें।
फिर किन्हीं आम्नाय के अनुसार पृथ्वी तत्त्व का ध्यान करें।
पूजन विधि - उसके बाद यन्त्र के सामने उपवास पूर्वक 'ॐ ह्रीँ आँ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा' इस मन्त्र का जाप करते हुए दस हजार जाति के पुष्प चढ़ायें।
स्थापना विधि- तत्पश्चात इस यन्त्र को ताम्र पात्र में उत्कीर्ण कर देवगृह में मूलनायक प्रतिमा के अधोभाग में स्थापित करें।
यह यन्त्र मूलनायक प्रतिमा की समग्र रूप से रक्षा, शान्ति और पुष्टि करता है।
जिस मूलनायक भगवान के नीचे यह यंत्र रखते हैं उस तीर्थंकर का नाम यन्त्र के मध्य में लिखा जाता है तथा उस तीर्थंकर के यक्ष-यक्षिणी का नाम भी