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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...393 ॐ इन्द्राय नमः ॐ इन्द्र इह कलश प्रतिष्ठायां इमं बलिं गृहाणगृहाण स्थापक-स्थापक कर्तृणां संघस्य जनपदस्य शान्तिं तुष्टिं-पुष्टिं कुरूकुरू स्वाहा।
इसी प्रकार 'ॐ आग्नेय नम: ॐ अग्नये... स्वाहा' ऐसे सभी दिक्पालों के क्रमश: नाम लेते हुए एवं उस-उस दिशा की तरफ मुख करते हुए बलि दें। बलि को तैयार करते समय पहले चुल्लु भर जल डालें, फिर सुगन्धित द्रव्य छींटे, पुष्प डालें और सात प्रकार के पकाए गए धान्य डालें।
• तत्पश्चात जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के समान चार सौभाग्यवती नारियों द्वारा मूलिका वर्ग, सर्वौषधि आदि औषधियों को तैयार करवाएं। फिर पूर्ववत स्नात्रकारों को आमंत्रित कर उनका सकलीकरण और शचिविद्या आरोपण की क्रिया करें।
. उसके बाद जिनबिम्ब के समक्ष चार स्तुतियों द्वारा चैत्यवन्दन करें। इसी क्रम में पूर्ववत शान्ति देवता, श्रुत देवता, शासन देवता, क्षेत्र देवता एवं समस्त वैयावृत्यकर देवों की आराधना के लिए एक-एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग कर उनकी स्तुतियाँ बोलें। • फिर निम्न श्लोक कहकर कलश पर पुष्पाञ्जलि अर्पित करें
पूर्णं येन सुमेरूश्रृंगसदृशं, चैत्यं सुदेदीप्यते यः कीर्ति यजमान, धर्मकथन, प्रस्फूर्जितां भाषते । यः स्पर्धा कुरुते जगत् त्रय मही, दीपेन दोषारिणा
सोऽयं मंगल रूप मुख्य गणनः, कुम्भश्चिरं नन्दतु ।। • तत्पश्चात आचार्य मध्य की दोनों अंगुलियों को सीधा करके रौद्र दृष्टि पूर्वक तर्जनी मुद्रा दिखायें। फिर बाएँ हाथ में जल लेकर कलश पर छींटें। फिर कलश पर चन्दन का तिलक करके पुष्पादि से उसकी पूजा करें। फिर आचार्य मुद्गर मुद्रा का दर्शन कराएं।
• उसके बाद निम्न मंत्र के द्वारा कलश के ऊपर हाथ से स्पर्श करके बुरी दृष्टियों से उसकी रक्षा करें तथा श्रावकों के द्वारा कलश के ऊपर सात धान्य का प्रक्षेपण करवाएँ।
ॐ हीं क्षां सर्वोपद्रवं रक्ष-रक्ष स्वाहा। • अभिषेक- तदनन्तर पूर्वोल्लिखित 18 अभिषेक की भाँति गीतनाद और वाद्य पूर्वक स्नात्रकारों के द्वारा कलश के नौ अभिषेक करवाएँ।