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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...401 • यदि चैत्य प्रतिष्ठा का स्वतन्त्र प्रसंग हो तो कुंभस्थापना, नंद्यावर्त पूजन, वेदी रचना आदि पृथक् रूप से करने चाहिए, अन्यथा बिम्ब प्रतिष्ठा के निमित्त की जाने वाली उक्त क्रियाओं को चैत्य प्रतिष्ठा के लिए भी स्वीकार कर सकते हैं।
मण्डप प्रतिष्ठा- आचार दिनकर के अनुसार अधिवासना मंडप, रंग मंडप, चौकी मंडप आदि की प्रतिष्ठा चैत्य प्रतिष्ठा के समान करते हैं, किन्तु वहाँ परमात्मा की स्नात्र पूजा एक बार ही की जाती है।
देवकुलिका प्रतिष्ठा- देवकुलिका की प्रतिष्ठा के समय वेदी बनाकर उसके आगे बलि की विधि करें। बहत नंद्यावर्त्त पूजन के स्थान पर लघु नंद्यावर्त्त (पाँच वलय युक्त नंद्यावर्त्त) पूजा करें। अन्य भी क्रियाएँ चैत्य प्रतिष्ठा के समान करें।
मण्डपिका प्रतिष्ठा- मण्डपिका की प्रतिष्ठा देवकुलिका प्रतिष्ठा के समान ही करें।
कोष्ठिका प्रतिष्ठा- कोष्ठिका आदि की प्रतिष्ठा में तन्तु सूत्रों के द्वारा रक्षा करें, दिक्पाल एवं नवग्रहों की पूजा करें तथा पूर्व कथित वास्तु देवता के मन्त्र का स्मरण कर वासचूर्ण डालें।32
॥ इति चैत्य प्रतिष्ठा विधि ।।
जिनबिम्ब परिकर प्रतिष्ठा विधि अरिहंत परमात्मा की प्रतिमा को तद्प जानने हेतु परिकर अत्यावश्यक है। अरिहंत चैत्य एवं सिद्ध चैत्य का भेद ध्वजा के माध्यम से होने में मूल हेतु यही है। अप्रतिष्ठित प्रतिमा की भाँति परिकर आदि में आसुरी शक्तियों का वास हो सकता है अत: बिम्ब के परिकर की भी प्रतिष्ठा होनी चाहिए। __ आचार दिनकर में प्रतिपादित बिम्ब परिकर प्रतिष्ठा की विधि इस प्रकार है
• यदि परिकर जिनबिम्ब के साथ हो, तो जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा के समय वासक्षेप डालने मात्र से परिकर की प्रतिष्ठा पूर्ण हो जाती है, किन्तु परिकर जिनबिम्ब से अलग हो तो उसकी अलग से प्रतिष्ठा होती है। परिकर का आकार निम्न प्रकार का होता है- बिम्ब के नीचे हाथी, सिंह एवं कमल के चिन्हों से युक्त सिंहासन होता है। दूसरे मत के अनुसार सिंहासन के मध्य भाग में दो मृगों के तोरणाकार के नीचे धर्मचक्र होता है और उसके दोनों तरफ के भागों में