________________
402... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन नवग्रहों की मूर्तियाँ होती है।
• आचार्य वर्धमानसूरि के मतानुसार सिंहासन के पार्श्व में दो चामरधारी होते हैं। उसके बाहर अंजलिबद्ध दो पुरुष खड़े हुए होते हैं। मस्तक के ऊपर क्रमश: एक के ऊपर एक तीन छत्र होते हैं। उसके पार्श्व में सूंड के अग्रभाग में स्वर्ण-कलशों को धारण किए हुए- ऐसे दो श्वेत हाथी होते हैं तथा हाथी के उपर झर्झर वाद्य बजाने वाले दो पुरुष होते हैं। उसके ऊपर दो मालाकार होते हैं। शिखर पर दो शंख बजाने वाले होते हैं और उसके ऊपर कलश होता है।
इस प्रकार से निर्मित परिकर की प्रतिष्ठा हेतु बिम्ब प्रतिष्ठा के योग्य मुहूर्त निकलवाएं। फिर शुभ दिन में भूमि शुद्धि, अमारि घोषणा एवं संघ आमन्त्रण पूर्वक परमात्मा की स्नात्रपूजा करें।
• परिकर की प्रतिष्ठा लगभग कलश प्रतिष्ठा के समान होती है इसलिए जिनबिम्ब के स्नात्रजल से परिकर का अभिषेक करें। तदनन्तर कलश की भाँति परिकर की सुगंधी पदार्थों से पूजा करें। सात प्रकार के धान्य चढ़ाते हुए बधाएँ, आचार्य दाएं दो हाथ की मध्य अंगुलियों को ऊँचा कर तर्जनी मुद्रा दिखाते हुए तथा क्रूर दृष्टि से बाएं हाथ में चुल्लु भर जल लेकर परिकर के ऊपर आच्छोटन करें। फिर अक्षत से भरा हुआ पात्र चढ़ाएँ।
• तत्पश्चात निम्न मंत्र को तीन बार पढ़कर गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य से परिकर की पूजा करें तथा अखण्ड वस्त्र से उसे ढ़क दें
ॐ ह्रीं श्रीं जयन्तु जिनोपासकाः सकला भवन्तु स्वाहा।। . उसके पश्चात जिस तीर्थंकर का परिकर हो उनका चार स्तुतियों से चैत्यवन्दन करें। तीसरी स्तुति कहने के बाद शान्ति देवता, श्रुत देवता, क्षेत्र देवता, भुवन देवता, शासन देवता, वैयावृत्यकर देवता एवं प्रतिष्ठा देवता के आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुतियाँ पूर्व की भाँति करें।
• फिर लग्न वेला के आने पर परिकर के आगे परदा बाँधकर सब लोगों को दूर करें। उसके बाद शुभ लग्न में निम्न मंत्र बोलकर परिकर के मुख्य अंगों पर तीन-तीन बार सूरिमंत्र से अभिमंत्रित वासचूर्ण डालें। जैसे- निम्न मंत्र से धर्मचक्र पर वासक्षेप डालें
ॐ ह्रीं श्रीं अप्रतिचक्रे धर्मचक्राय नमः।