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340... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
14. चतुर्दश- चन्दनरस स्नात्र - चौदहवें अभिषेक में चंदन रस और दूध को संयुक्त कर कलशों में भरें।
फिर गुरु भगवन्त या विधिकारक निम्न मंत्र बोलकर वासचूर्ण डालेंॐ रोहिणीपतये चन्द्राय ॐ ह्रीँ द्राँ द्रीँ चन्द्राय नमः स्वाहा । तत्पश्चात निम्न मंत्र कहकर चन्द्र के दर्शन करवाएँ
ॐ अर्हं चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, नक्षत्रपतिरसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि कौमुदीपतिरसि, निशापतिरसि, मदनमित्रमसि, जगज्जीवनमसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजासि राजराजोऽसि, औषधीगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन्! प्रसीद अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयंकुरु कुरु, भद्रं कुरु कुरु, सन्निहितो भव भव श्रीशशाङ्काय नमः ।
फिर 27 डंका बजवाएं और मंगल गीत गाएं।
तत्पश्चात स्नात्रकार जिनबिम्बों के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक ‘नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र का उच्चारण कर 27 डंका बजवायें।
शीतल सरस सुगंधी, मनोमतश्चन्दनद्रुम समुत्थः । चंदन कल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिन बिम्बे ।। मन्त्र - ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम- अर्हते क्षीर- चंदनाभ्यां स्नापयामीति स्वाहा फिर चन्दन- दुग्ध से प्रभु का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप से जिनबिम्बों का पूजन करें ।
15. पंचदश - केसर जल स्नात्र - पन्द्रहवाँ अभिषेक करने हेतु केसर एवं शक्कर को जल में मिश्रित कर उसे आवश्यकतानुसार पृथक्-पृथक् कलशों में भरें।
फिर स्नात्रकार कलश लेकर प्रतिमा के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक ‘नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें।
काश्मीरज सुविलिप्तं, बिम्बं तन्नीर धारयाऽभिनवम् । सन्मन्त्रयुक्तया शुचि, जैनं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।