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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...363 फिर इसी मन्त्र से स्नात्रकारों को अभिमन्त्रित करें।
बलिनिक्षेप- फिर आचार्य निम्न मंत्र से बलि (गेहूँ आदि धान्य) को अभिमन्त्रित करें।
ओं ह्रीं क्ष्वी सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष-रक्ष स्वाहा।
स्नात्रकार अभिमन्त्रित बलि को जलदान एवं धूपदान पूर्वक चारों दिशाओं में निक्षिप्त करें।
फिर 'नमोऽर्हत्' पूर्वक निम्न श्लोक पढ़ते हुए नवीन बिम्बों पर पुष्पों का क्षेपण करें
अभिनव सुगंधिवासित पुष्पौघभृता सुधूप गंधाढ्या ।
बिम्बोपरि निपतन्ती मुखानि पुष्पांजलिः कुरुताम् ।। विघ्नोत्रासन एवं जलोच्छाटन- तदनन्तर आचार्य नवीन बिम्बों को रौद्र दृष्टि से तर्जनी मुद्रा दिखायें। फिर बाएँ हाथ में जल लेकर बिम्बों के ऊपर छीटें। फिर स्नात्रकार जिन बिम्बों के चन्दन का तिलक लगायें और पुष्पों के द्वारा पूजन करें। इसी क्रम में आचार्य जिनबिम्ब को मुद्गर मुद्रा का दर्शन करवायें, बिम्ब के समक्ष अखंड चावलों से भरा हुआ थाल रखें, वज्र मुद्रा एवं गरुड़ मुद्रा के द्वारा बिम्ब के नेत्रों की रक्षा करें।
फिर प्रतिष्ठाचार्य 'ॐ ह्रीं श्वी सर्वोपद्रवं बिम्बस्य रक्ष-रक्ष स्वाहा' इस मन्त्र के द्वारा जिनबिम्बों का कवच बनाएं और दिग्बंधन करें।
सप्त धान्य वृष्टि- तत्पश्चात स्नात्रकार जिनबिम्बों के ऊपर सात प्रकार के धान्यों 1. सण 2. लाज 3. कुलथी 4. यव 5. कंगु 6. उड़द और 7. सर्षपइनकी वृष्टि करें। प्रतिष्ठा के मूल चरण - अठारह अभिषेक- उक्त विधियों के अनन्तर नूतन बिम्बों के अशुद्ध तत्त्वों का निराकरण एवं शुद्ध तत्त्वों का आरोपण करने हेतु विभिन्न प्रकार की
औषधियों के द्वारा निर्धारित श्लोकों का उच्चारण करते हुए १८ बार अभिषेक करते हैं। इस क्रिया के सम्पादनार्थ कलश, जल, गन्ध, पुष्प, धूप आदि को मन्त्रित भी करते हैं। यह सम्पूर्ण विधि अठारह अभिषेक विधि के अन्तर्गत कही जा चुकी है इसलिए यहाँ नहीं कहेंगे।
अधिवासना- 18 अभिषेक हो जाने के पश्चात गुरु बाएँ हाथ में