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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 351
जलधि नदीहृदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धर्यथम् ।। ॐ ह्रीं ह्रीं परम गुरुभ्यः पूज्यपादेभ्यो गन्ध पुष्पादि सम्मिश्र तीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा ।
तदनन्तर मूर्ति आदि पर चन्दन का तिलक लगाएं, पुष्प चढ़ाएं एवं धूप प्रज्वलित करें |
।। इति गुरुमूर्ति अभिषेक विधि ।। स्थापनाचार्य आदि की अभिषेक विधि
स्थापनाचार्य, यन्त्र पट्ट, मंगल मूर्ति आदि के अभिषेक के सम्बन्ध में किसी भी ग्रन्थकार ने स्पष्ट उल्लेख किया हो ऐसा ज्ञात नहीं है। वर्तमान परम्परा में जिन बिम्बों के अभिषेक के समय यन्त्र आदि को एक थाली में रखकर 18 अभिषेक के औषधि जलों से उनकी भी शुद्धि कर ली जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य विधि-क्रिया लगभग नहीं होती है ।
।। इति स्थापनाचार्यादि अभिषेक विधि | जलयात्रा विधि
प्रतिष्ठा एवं अठारह अभिषेक आदि के अवसर पर शुद्ध जल लाने हेतु निम्न विधि करनी चाहिए।
• सर्वप्रथम श्री शान्तिनाथ भगवान अथवा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा को नवग्रह युक्त परिकर वाली पालखी में विराजमान करें। फिर अखण्ड शरीर वाले श्रेष्ठ स्नात्रकारों के द्वारा वह पालखी उठवायें। फिर महोत्सव पूर्वक छत्र, चामर, ध्वजा, हाथी, घोड़ा, विविध प्रकार के वाद्य बजाते हुए वरघोड़ा निकालें। पालखी के पीछे सधवा स्त्रियाँ मांगलिक गीत गाती हुई चलें। सौभाग्यवती नारी के हाथ में दीपक रहें ।
• मार्ग में चलते हुए जितने देव स्थान आये वहाँ ( गाँव की परम्परा हो तो) एक - एक श्रीफल चढ़ायें।
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रास्ते में चलते हुए कोरा बलि बाकुला, फूल, मेवा आदि उछालते हुए निम्न गाथा बोलते रहें
ॐ भवणवइ वाणमंतर, जोइसवासी विमाणवासी य । जे केई दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा । ।