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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...343 स्नात्रकार आरती-मंगल दीपक करें और प्रतिष्ठाचार्य संघ के साथ देववन्दन करें।
।। इति जिनबिम्ब अठारह अभिषेक विधि ।।
ध्वजदंड एवं कलश अभिषेक विधि सामान्यतया जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा के प्रसंग पर ध्वजदंड एवं कलश की प्रतिष्ठा होने से नुतन बिम्बों के साथ ध्वजदंड आदि के अभिषेक भी हो जाते हैं।
जिनबिम्ब के 18, ध्वजदंड के 15/13 एवं कलश के 9 अभिषेक होते हैं। इन तीनों की अभिषेक विधि एक समान है अत: श्लोक और मंत्र भी समान ही बोले जाते हैं केवल 'बिम्ब' के स्थान पर दण्ड अथवा कलश शब्द का प्रयोग होता है।
प्रतिष्ठा के अवसर पर इन सभी के अभिषेक एक साथ सम्पन्न किये जाते हैं। उस समय तत्सम्बन्धी श्लोकों में शब्दों का परिवर्तन कर उन्हें दो-तीन बार बोल देते हैं जिससे ध्वजदंड और कलश की पृथक-पृथक विधि नहीं करनी पड़ती है इसलिए यहाँ स्वतन्त्र विधि देने की आवश्यकता भी नहीं है।
कदाचित ध्वजदंड या कलश जीर्ण या भग्न हो जाये तो किसी भी शुभ दिन में नवीन दंड स्थापित करना पड़ सकता है। उस स्थिति को ध्यान में रखते हुए ध्वजदंड अभिषेक की विधि कही जा रही है।
विधिमार्गप्रपा के अनुसार ध्वजदंड के 15 अभिषेक होते हैं।2 तथा आचार दिनकर एवं कल्याणकलिका आदि के मतानुसार 13 अभिषेक होते हैं।13 वर्तमान में 13 अभिषेक प्रचलित हैं। उनका नाम क्रम इस प्रकार है
1. सवर्ण जल स्नान 2. रत्न जल स्नान 3. कषाय जल स्नान 4. मृत्तिका जल स्नान 5. मूलिका स्नान 6. अष्टवर्ग स्नान 7. सर्वौषधि स्नान 8. गन्ध स्नान 9. वास स्नान 10. चन्दन स्नान 11. कुंकुम (केसर) स्नान 12. तीर्थजल स्नान 13. कर्पूर जल स्नान 14. इक्षुरस स्नान 15. घृत-दुग्ध-दधि स्नान।
विधिमार्गप्रपा14 आचारदिनकर15 एवं कल्याणकलिका16 आदि प्रतिष्ठाकल्पों के अनुसार कलश के नौ अभिषेक होते हैं। उनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं1. सुवर्ण जल स्नात्र 2. सर्वौषधि स्नात्र 3. मूलिका स्नात्र 4. गंध स्नात्र 5. वास स्नात्र 6. चन्दन स्नात्र 7. केसर स्नात्र 8. कर्पूर स्नात्र 9. कुसुम स्नात्र।।
विधिमार्गप्रपा में अन्तिम के दो नाम अधिक हैं। कल्याण कलिका में जिनबिम्ब के 18 अभिषेक होने के पश्चात इक्षुरस आदि चारों के अभिषेक का