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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...293
जवारारोपण विधि वर्तमान परम्परा में प्रचलित जवारारोपण विधि इस प्रकार है
• कुंभस्थापना के छह या आठ दिन पूर्व ही जवारों का रोपण कर देना चाहिए तथा जवारारोपण के मूल दिन उस विधि का दस्तूर मात्र करने के लिए कुंवारी कन्या के हाथ से पहले बोये हुए शरावों में थोड़े जवारे और डलवा देना चाहिए।
यदि कुंभ स्थापना के पहले जवारारोपण नहीं किया हो तो निम्न विधि से जवारा बोने चाहिए।
• एक-एक बांस में सात-सात छाबड़ियाँ गुंथी हुई हो, ऐसे चार बांस और सोलह मिट्टी के सकोरों को जल से शुद्ध करें। फिर चारों बांस पर अभिमन्त्रित एक-एक मीढ़ल बांधे।
. फिर जवारा बोने के लिए तालाब-सरोवर आदि जलाशय की अथवा जंगल की पाँच भगोने जितनी पीली मिट्टी में एक छोटे भगोने जितना गाय के कंडे का भुक्का मिश्रित करके उसमें थोड़ा-थोड़ा जल डालते हुए एकमेक कर दें।
• फिर वह भुक्का सुकुमारिकाओं के हाथ से डेढ़ अंगुल खाली रहे उस प्रकार सोलह सकोरों में तथा दो अंगुल खाली रहे उस प्रकार अट्ठाईस छाबड़ियों में भरवायें।
• फिर प्रत्येक सकोरों एवं छाबों में चारों तरफ एक-एक मुट्ठी डांगर और जौ वपन करवायें। पक्षीगण जवा आदि चुग न लें उस प्रकार से मिश्र चूर्ण को उन धान्यों पर डाल दें।
• तदनन्तर दिन में तीन-चार बार झारी अथवा कलश आदि से जवारों पर थोड़ा-थोड़ा जल छीटें।
यहाँ ध्यातव्य है कि सकोरों में अधिक पानी डालने से जवारा गल जाते हैं इसलिए मिट्टी के ऊपर पड़ा रहे इतना पानी सकोरों में न डालें। बांस की छाबों में तो अधिक जल छींटने पर भी जौ गलने का भय नहीं रहता है क्योंकि उसमें से पानी झर जाता है। __• ग्रीष्म काल में चौथे दिन, चातुर्मास में पाँचवें दिन और शीत काल में छठे दिन जवारा उग जाते हैं इसलिए यथाशक्य जौ आदि का वपन जल्दी करना