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332... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
अठारह अभिषेक की सम्पूर्ण विधि में निम्न बिन्दुओं पर अवश्य ध्यान दें1. स्नात्र करने वाले चार अथवा अधिक पुरुष प्रत्येक अभिषेक में
तत्सम्बन्धी औषधि चूर्ण से मिश्रित जल को कलशों में भरकर उन्हें हाथ
में लेकर खड़े रहें। 2. प्रत्येक अभिषेक के अन्त में वाद्य यन्त्रों की मधुर ध्वनियाँ, गीतनाद एवं
नृत्य आदि होते रहें। 3. प्रत्येक स्नात्र में श्लोक बोलने के पश्चात अभिषेक करें। उसके बाद
क्रमश: जिनबिम्बों को चंदन का तिलक लगायें, फिर पुष्प चढ़ायें और फिर धूप का उत्क्षेपण करें। 4. प्रत्येक स्नात्र में जिनबिम्बों का अभिषेक करते समय नमस्कार मन्त्र का
स्मरण करें। 5. वर्तमान परम्परा के अनुसार श्लोक कहने के पश्चात मंत्र बोलें तथा
उसके पश्चात 27 डंकों युक्त थाली बजायें। 6. प्रत्येक श्लोक से पूर्व 'नमोऽर्हत् सूत्र' बोलें। 7. प्रत्येक स्नात्र के लिए एक प्रमाणोपेत बाल्टी आदि में अभिमन्त्रित जल
भर लिया जाए। फिर जिस औषधि चूर्ण का अभिषेक करना हो उसे पानी में सम्मिश्रित कर कलशों में भरें। 8. प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पों में अभिषेक हेतु चार स्नात्रकार एवं चार कलशों का
उल्लेख है। स्नात्रकार एवं कलश की संख्या एक जिनबिम्ब की अपेक्षा कही गई मालूम होती है अत: जितनी संख्या में प्रतिमाएँ हों तदनुसार
स्नात्रकारों और कलशों की संख्या माननी चाहिए। 9. अठारह अभिषेक प्रारम्भ करने के ठीक पूर्व एक नवकार मन्त्र का स्मरण
करते हुए उपस्थित संघ के साथ 'आत्मरक्षा स्तोत्र' का पाठ करें। - 1. प्रथम हिरण्योदक स्नात्र- पहला अभिषेक करने हेतु स्वर्ण के बरख से मिश्रित जल को चार कलशों में भरें। फिर 'नमोऽर्हत.' पूर्वक निम्न श्लोक बोलें
सुपवित्र तीर्थ नीरेण, संयुतं गन्धपुष्प संमिश्रम् ।
पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मंत्र परिपूतम् ।। फिर निम्न मंत्र कहें