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336... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
मेदाद्यौषधि भेदोऽपरोऽष्टवर्गः सुमन्त्र परिपूतः ।
निपतन् बिम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ।। मन्त्र- ॐ ह्रां ह्रीं परम-अर्हते मेदाद्यौषधि अष्टक वर्गेण स्नापयामीति स्वाहा।
तत्पश्चात स्नात्रकार सभी बिम्बों का अभिषेक करें तथा पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप पूजा करें। जिन आह्वान आदि की अवान्तर विधि
जिन आह्वान एवं मुद्रा दर्शन- उक्त नौ अभिषेक होने के पश्चात प्रतिष्ठाचार्य खड़े होकर बिम्ब के सामने गरुड़, मुक्ताशुक्ति और परमेष्ठी- इन तीन मुद्राओं में से कोई एक मुद्रा दिखाकर प्रतिष्ठाप्य तीर्थंकर परमात्मा का आह्वान करें। जिन आह्वान मन्त्र यह है
ओं नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुख परमेष्ठिने त्रैलोक्यगताय अष्टदिविभागकुमारी परिपूजिताय देवाधिदेवाय दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यमहिताय आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।
दशदिक्पाल आह्वान- जिन आह्वान करने के पश्चात प्रतिष्ठाचार्य अथवा उपस्थित गुरु भगवन्त प्रत्येक दिक्पाल का आह्वान उस-उस दिशा की
ओर मुख करके निम्न मंत्रों से करें। ___प्रत्येक मंत्र के अन्त में 'स्वाहा' शब्द कहने के पश्चात गुरु वासचूर्ण डालें और श्रावक पुष्पांजलि अर्पित करें।
यदि अंजनशलाका विधि हो तो 'प्रतिष्ठाविधौ', बिम्ब स्थापना का प्रसंग हो तो 'इह जिनेन्द्रस्थापने' तथा जिन प्रतिमाओं की शुद्धि का अवसर हो तो 'जिनबिंबगृहे' वाक्य पद का उच्चारण करें। दिक्पालों के आह्वान मन्त्र क्रमश: इस प्रकार हैंपूर्व दिशा- ॐ इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। आग्नेय कोण- ॐ अग्नये सायुधाय सवाहनाय सवाहनाय सपरिजनाय
इह जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा। दक्षिण दिशा- ॐ यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय इह
जिनेन्द्रस्थापने आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।