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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ... 151
इस प्रकार देव-दैत्य आदि के द्वारा पूजन करने से मूलतः 14 जातियाँ उत्पन्न हुई। उनके अवान्तर अगणित भेद हैं। इसकी संक्षिप्त सारणी निम्न हैं- 77 मूल
किसके द्वारा
अवान्तर
प्रासाद प्रासाद
1888
• देवताओं के
प्रासाद
• दानवों के
•
• यक्षों के
पूजन
पूजन
से द्राविडादि प्रासाद
गंधर्वों के पूजन से लतिनादि प्रासाद
से विमानादि प्रासाद
पूजन
• विद्याधरों के से मिश्रकादि प्रासाद
•
·
से नागर जाति के
·
प्रासाद
• सर्पों के पूजन से सांधारादि प्रासाद महाराजाओं के पूजन से भूमिजादि
•
पूजन
अष्ट वसुओं के पूजन से वराटकादि
प्रासाद
सूर्य नारायण पूजन से विमाननागरादि
प्रासाद
चन्द्र के
प्रासाद
• पार्वती के
•
पूजन
से विमान पुष्पकादि
पूजन से वलभ्यादि प्रासाद हर सिद्धि आदि देवों द्वारा पूजन सिंहावलोकन दारूजादि प्रासाद पिशाचादि देवों के पूजन से
फांसनादि और नपुंसकादि प्रसाद
5
5 5 5 5
5
5/25
500
25
525
118
112
1250
625
इस प्रकार उक्त चौदह जाति के प्रासाद वैराज्यादि प्रासादों में से उत्पन्न हुए जानना चाहिए।
उपरोक्त 14 प्रकारों में से 1. नागर आदि 2. द्राविड आदि 3. भूमिज आदि 4. लतिन आदि 5. सांधार आदि 6. विमान आदि 7. मिश्रक आदि और 8. पुष्पक आदि- ये आठ प्रकार के प्रासाद शुभ माने गये हैं।