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158... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
द्वार के सामने पड़ता हो तो भी द्वार वेध होता है। यह दोष भी संघ के लिए हानिकारक है।
8. मन्दिर के सामने कीचड़ हो अथवा सूअर आदि निम्न श्रेणी के पशु बैठे रहते हों तो महादोष है । इससे शोक उत्पन्न होता है।
9. किसी के घर का रास्ता मन्दिर से होकर जाता हो अथवा किसी घर के गन्दे पानी के निकास की नाली मन्दिर द्वार के सामने से जाती हो तो भी अत्यंत अशुभ होता है और वह समाज के लिए क्षतिकारक है।
10. मन्दिर के मुख्य द्वार से अन्य वास्तु का मार्ग जाना भी हानिकारक माना गया है।
संख्या के अनुसार वेध दोष का फल
• यदि जिनालय एक वेध से दूषित हो तो पारस्परिक कलह का कारण बनता है।
• यदि जिनालय दो वेध से दूषित हो तो अतिहानि होती है।
• यदि जिनालय तीन वेध से दूषित हो तो मन्दिर में सूनापन रहता है और वहाँ भूत-प्रेत निवास करते हैं ।
• यदि जिनालय चार वेध से दूषित हो तो मन्दिर की सम्पत्ति नष्ट होती है। • यदि जिनालय पाँच वेध से दूषित हो तो गाँव ही उजड़ जाता है तथा महामारी आदि महान उत्पात होने की सम्भावना रहती है।
द्वार वेध का विचार
मुख्य द्वार के समक्ष जो संरचना मन्दिर आदि के लिए अकल्याणकारी होती है उसे द्वार वेध कहते हैं। इससे सम्बन्धित दोष एवं उनका फल यह है1. यदि मुख्य द्वार के नीचे पानी के निकलने का मार्ग हो तो वह वेध निरन्तर धन के अपव्यय का कारण बनता है ।
2. द्वार के सामने निरन्तर कीचड़ जमा रहे तो इससे समाज में शोक पूर्ण घटना क्रम होते हैं।
3. यदि द्वार के समक्ष वृक्ष आ जाये तो यह वेध बच्चों एवं संतति के लिए कष्टकारक होता है।
4. यदि द्वार के सम्मुख कुआँ, नलकूप आदि जलाशय हो तो रोगकारक एवं अशुभ होता है।