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पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...251 इसी प्रकार इन्द्रों द्वारा निभाया जाने वाला व्यवहार, स्वप्न पाठकों की प्रतिभाओं का बहुमान आदि से समाज में एकता एवं समादर के भावों को स्थापित करता है। च्यवन कल्याणक के समय क्या भावना करें?
च्यवन कल्याणक का उत्सव मनाते समय उपस्थित जन समुदाय को यह भावना करनी चाहिए कि जिस प्रकार तीर्थङ्कर के जीव ने माता के गर्भ में अवतार लिया है उसी तरह हमारे चैतन्य हृदय में भी शुद्ध स्वरूप का प्रकटीकरण हो। तीर्थङ्कर प्रभु के अवतरण के समय माता-पिता को जिस आनन्द की अनुभूति हुई उसे स्वानुभव के आधार पर महसूस करने का प्रयत्न करें।
जिस प्रकार देवी-देवता अपनी भोग-विलासमयी जिन्दगी का त्यागकर परमात्मा के कल्याणकों की आराधना भव्य उत्सव के साथ करते हैं वैसे ही हमें भी अपने सांसारिक कार्यों को छोड़कर अगाध श्रद्धा एवं भक्ति के साथ इसकी आराधना करनी चाहिए।
जैसे माता गर्भ में अवतरित बालक का पोषण पूर्ण सजगता एवं बड़ों की शिक्षाओं के अनुसार करती हैं तथा सदैव शुभ विचारों में मग्न रहती है वैस ही च्यवन कल्याणक के अवसर पर हृदयस्थ परमात्मा को स्थायी बनाए रखने हेतु असद्प्रवृत्तियों से बचकर रहना चाहिए।
जैसे तीर्थंकर के जीव का च्यवन कल्याणक अंतिम होता है वैसे ही जन्ममरण की परम्परा को समाप्त करने की प्रार्थना का मनोभाव रखना चाहिए।
2. जन्म कल्याणक जन्म कल्याणक का अर्थ .. नौ मास आदि की गर्भावधि पूर्ण होने पर तीर्थङ्करों का माता की कुक्षी से उत्पन्न होना जन्म कल्याणक कहलाता है। उस समय प्रकृति में सभी ग्रहों की स्थिति उच्च एवं बलवान होती है अतः सर्वत्र सर्वाधिक आनन्द होता है। अनेक भव्यात्माओं के भव्यत्व की सफलता तीर्थङ्कर जैसे पुरुषों के जन्म में निहित होती है। अपार्थिव आत्म सत्ता के अपूर्व ज्ञाता तीर्थङ्कर प्रभु का पार्थिव रूप में यह अन्तिम जन्म असंख्य जीवों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होता है। तीर्थङ्कर प्रभु का इस भूमि पर अवतरित होना अनेक जीवों के लिए कल्याण करने वाला होता है इसलिए इसे जन्म कल्याणक कहा जाता है।