________________
पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...267 रहता है। परमात्मा के साक्षात जन्मोत्सव की कल्पना करने से जो भाव उत्पन्न होते हैं उससे अनंत गुणा दुष्कर्मों की निर्जरा और पुण्यानुबंधी पुण्य का सर्जन होता है। इससे भी मानसिक स्थिति सुदृढ़ बनती है। गृहस्थ अवस्था में परमात्मा की वैराग्यवासित स्थिति, माता-पिता के प्रति आज्ञा परायणता एवं सांसारिक कार्यों के प्रति अरुचि आदि दृश्य देखकर विरक्ति भाव परिपुष्ट बनते हैं।
दीक्षा कल्याणक का उत्सव करने से पर धन, परिग्रह एवं परिवार के प्रति जुड़ी हुई आसक्ति कम होती है। संसार की सही स्थिति का भान होता है और संसार सम्बन्धी विकल्प समाप्त होते हैं।
केवलज्ञान कल्याणक के माध्यम से आत्मा की सुप्त शक्तियों का आभास होता है तथा तीर्थङ्कर पद की गरिमा समझ आने से 'नमो अरिहंताणं' इस पद के प्रति पूर्ण समर्पण के भाव उत्पन्न होते है जिससे प्रगाढ़ दुष्कर्म भी शिथिल हो जाते हैं।
निर्वाण कल्याणक को मनाते हुए शाश्वत सुख को पाने की चाह जागृत हो जाती है।
सामाजिक दृष्टि से देखें तो पंचकल्याणकों का उत्सव सामाजिक एकता, सौहार्द एवं संगठन में सहायक बनता है। ऐसा भव्य सामूहिक अनुष्ठान सामाजिक मनमुटाव को समाप्त करता है। च्यवन कल्याणक की उजवणी से सकल संघ में परमात्मा के साक्षात जन्म लेने जैसा उत्साह पैदा होता है तथा चिर-प्रतिक्षित प्रतिष्ठा का कार्य प्रारंभ हो जाने से आनंद एवं उत्साह का माहौल बनता है। ____ जन्म कल्याणक की उजवणी सुसंस्कारी समाज के गठन में सहायक बनती है। जन्म से दीक्षा कल्याणक तक के सभी विधान समाज को सही दिशा देने का कार्य करते हैं, बच्चों को अध्ययन आदि के कर्तव्यों के प्रति जागरुक बनाते हैं तथा माता-पिता के प्रति बालक एवं युवा वर्ग के जो दायित्व हैं उनका अहसास दिलवाते हैं।
दीक्षा कल्याणक का प्रसंग समाज में संयम के महत्त्व को स्पष्ट करता है। यह सर्व विरति एवं देश विरति के भावों को पुष्ट कर समाज के आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करता है।
जन्म एवं मृत्यु के अटल नियम से कोई बच नहीं सकता, चाहे फिर वे