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अध्याय-8
जिन प्रतिमा प्रकरण
जिन प्रतिमा का सामान्य अर्थ है अरिहंत परमात्मा की मूर्ति। पाषाण, काष्ठ, रत्न आदि पदार्थों से निर्मित यह कलाकृति परमात्मा के साक्षात स्वरूप का स्मरण एवं आभास करवाती है। यह प्रतिमाएँ अपने गुण विशेष के आधार पर वीतराग प्रभु की छवि का आभास करवाकर हमें उसके समान बनने के लिए प्रेरित करती हैं। __ जिनालय में सामान्यतया दो प्रकार की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है1. अरिहंत प्रतिमा और 2. सिद्ध प्रतिमा। अरिहंत की प्रतिमा परिकर युक्त होनी चाहिए। यहाँ परिकर से तात्पर्य है कि प्रतिमा समवशरण की दिव्य विभूतियों सहित होनी चाहिए अथवा अरिहंत प्रतिमा के परिकर में अष्ट प्रातिहार्य एवं मांगलिक चित्र होने चाहिए। इस तरह परिकर युक्त प्रतिमा अरिहंत प्रतिमा कहलाती है। सिद्ध बाह्य सर्व विभूतियों से रहित होने के कारण उनकी प्रतिमा परिकर रहित होती है।
जिन प्रतिमा, अरिहंत आदि परमेष्ठी की प्रतिकृति है अत: इसे जिनबिम्ब भी कहते हैं। प्रतिमाओं को जिन चैत्य भी कहा जाता है। इस तरह जिन प्रतिमा अरिहंत एवं सिद्ध गुणों से युक्त होने के कारण समस्त साधकों के लिए तीनों काल में वन्दनीय और पूजनीय है। मंदिर के गर्भगृह में किस आकार की प्रतिमा स्थापित की जाए?
जिनेश्वर प्रभु की प्रतिमाओं का निर्माण एवं माप शास्त्रोक्त विधि से ही किया जाना चाहिए। शिल्पशास्त्र में गृह चैत्य एवं नगरस्थ जिनालय में पूजनीय प्रतिमाओं के आकार के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं। यह विवेक रखना अत्यन्त आवश्यक है कि मन्दिर में किस परिमाण की प्रतिमा स्थापित की जाये। जैसे कि जिनालय में एक हाथ से छोटे आकार की प्रतिमा स्थिर रूप से रखने का निषेध है। इस स्थिति में केवल चल प्रतिमा ही रखी जा सकती है। शिल्पज्ञों के अनुसार प्रतिमा के आकार की गणना मन्दिर एवं द्वार के आकार के अनुरूप की जाती है।