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पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...241 जिस प्रकार हम अपने पारिवारिक पूर्वजों की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए उनके चित्र अपने घरों में लगाते हैं अथवा अपने राष्ट्रीय नेताओं की स्मृति बनाये रखने के लिए उनके चित्र या स्टेच्यू समुचित राष्ट्रीय महत्त्व के स्थानों पर लगाते हैं और मुख्य अवसरों पर माल्यार्पण आदि के द्वारा उनका सम्मान करते हैं, उसी प्रकार अधिकांश धर्मों में अपने धर्म पूर्वजों, धार्मिक नेताओं, तीर्थङ्करों एवं भगवानों की तदाकार मूर्तियाँ मन्दिरों में प्रतिष्ठित की जाती हैं। ___ जैन धर्मावलम्बी भी तीर्थङ्करों की तदाकार मूर्तियाँ जिनमन्दिर में प्रतिष्ठित करते हैं। इस भारत वर्ष में हजारों जिनमन्दिर हैं और उनमें लाखों जिनबिम्ब (मूर्तियाँ) विराजमान हैं, जिनके दर्शन और पूजन प्रतिदिन लाखों जैन भाईबहिन करते हैं। लाखों लोग तो ऐसे हैं, जो प्रभु के दर्शन बिना और पूजन बिना भोजन भी नहीं करते।
जिनमन्दिरों में विराजमान जिनबिम्बों का अपना एक महत्त्व है। ये जिनबिम्ब हमारी संस्कृति के प्रतीक ही नहीं, संरक्षक भी हैं। सम्पूर्ण देश में बिखरे हुए लाखों जिनबिम्ब हमारे समृद्ध अतीत के प्रमाण तो हैं ही। इसी के साथ ‘यह भारत देश हमारी मूल भूमि है' इसके भी सशक्त प्रमाण हैं।
पाषाणों में उत्कीर्ण वीतरागी जिनबिम्ब (मूर्तियाँ) तब तक पूजने योग्य नहीं होते, जब तक कि इनकी विधि पूर्वक प्रतिष्ठा नहीं हो जाती। इसी प्रतिष्ठा विधि को सम्पन्न करने के लिए जो महोत्सव होता है, उसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव कहते हैं।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का अर्थ है- अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए पाँच सूअवसरों की प्राप्ति होना। पंचकल्याणक भरत-ऐरावत क्षेत्र के तीर्थङ्करों के ही होते हैं। विदेह क्षेत्र में पाँच, तीन और दो कल्याणक वाले तीर्थङ्कर भी होते हैं। महाविदेह क्षेत्र में कई जन गृहस्थ अवस्था में तीर्थङ्कर प्रकृति बाँधकर उसी भव में तीर्थङ्कर पद प्राप्त कर लेते हैं। कोई पर्व भव में तीर्थङ्कर प्रकृति बाँधकर पाँच कल्याणक से युक्त तीर्थङ्कर भी होते हैं।
देश या विदेश के जिनालयों में जितने भी प्रतिबिम्ब विराजमान हैं, वे सभी पंचकल्याणकों के महोत्सव में ही प्रतिष्ठित हुए हैं और भविष्य में भी जितने जिनबिम्ब विराजमान होंगे, वे सब भी विधिपूर्वक विराजमान होंगे। इस प्रकार यह एक अत्यन्त आवश्यक महोत्सव है।