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242... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
मूलतः तो पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में कई प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की जाती हैं, किन्तु किसी एक तीर्थङ्कर को विधिनायक के रूप में स्वीकार किया जाता है और उनके जीवन के आधार पर पंचकल्याणक का कार्यक्रम सुनिश्चित होता है।
पंचकल्याणक ऐसी पाँच घटनाएँ हैं, जो भरत क्षेत्र के चौबीसों तीर्थङ्करों के जीवन में समान रूप से घटित होती हैं इसलिए किसी भी तीर्थङ्कर को विधिनायक बनाया जा सकता है, उनमें कुछ छोटी-मोटी बातों को छोड़कर कोई विशेष अन्तर नहीं आता। माता-पिता के नाम, जन्म स्थान, वैराग्य का निमित्त आदि बातों में ही भेद आता है, शेष तो सब समान ही हैं। जैसे कि सौधर्मादि इन्द्र, सुमेरु पर्वत, पाण्डुक शिला, अभिषेक आदि सब एक-सा ही होता है। पाँच कल्याणकों का स्वरूप एवं वैशिष्टय
जो कल्याण करे, कल्याण में सहायक बनें, वह कल्याणक कहलाता है । तीर्थङ्कर परमात्मा के जीवन की पाँच मुख्य घटनाएँ कल्याणक कहलाती है और उन्हें ही पंचकल्याणक की संज्ञा से उपमित किया गया है। पूर्वाचार्यों के अनुसार च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण इन पाँच कल्याणकों की महिमा विशिष्ट कोटी की है। नारकी जीव जिन्हें निरंतर तीव्र दु:ख भोगने पड़ते हैं, कल्याणक के समय क्षणमात्र के लिए उन्हें भी अपूर्व सुख की अनुभूति होती हैं। कल्याणक का यह प्रसंग झुलसते हुए राही के लिए शीत हवा की लहर के समान है। उस समय तीनों ही लोक में अपूर्व आनंद एवं अपार हर्ष छा जाता है तथा सूर्य से भी प्रखर रोशनी सर्वत्र फैल जाती है। इसी का अनुकरण कर हुए प्रतिष्ठा अंजनशलाका महोत्सव में पंच कल्याणक महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
पंच कल्याणक कल्याणकारी कैसे ?
कल्याणक की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है -
सयल जिणेसर पाय नमी, कल्याणक विधि तास । वर्णवतां सुणतां थकां संघनी पूरे आस । । परमात्मा के कल्याणक की प्रत्यक्ष आराधना से ही नहीं, अपितु उनका वर्णन करने एवं सुनने से भी संघ की आशाएँ पूर्ण होती हैं। यह महोत्सव आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया या practical depresentation है। विश्व के