________________
मन्दिर निर्माण का मुहूर्त विचार ...75 मन्दिर की आयु अत्यल्प रहती है। 5. मूला, रेवती, कृत्तिका, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त और मघा-इन
सात नक्षत्रों पर मंगल हो और मन्दिर निर्माण आरम्भ के समय सूर्य और ___ चन्द्र दोनों कृतिका नक्षत्र पर हों तो वह शीघ्र ही जल जाता है। 6. लग्न में उच्च का सूर्य, उच्च का गुरु और ग्यारहवें भाव में उच्च का
शनि हो तो मन्दिर की आयु 1000 वर्ष होती है। 7. ज्येष्ठ, अनुराधा, भरणी, स्वाति, पूर्वाषाढ़ा और धनिष्ठा-इन नक्षत्रों में
शनि हो तथा मन्दिर निर्माण आरंभ शनिवार को हो तो पुत्र हानि होती है। 8. मकर, वृश्चिक और कर्क लग्न में मन्दिर आरंभ करने से नाश होता है। 9. मेष, तुला और धनु में कार्यारंभ करने से मन्दिर का कार्य दीर्घ समय में
पूर्ण होता है। 10. मध्याह्म और मध्य रात्रि में कार्यारंभ करने से मन्दिर के प्रमुख
कार्यकर्ताओं का धन नाश होता है। 11. दोनों सन्ध्याओं में भी मन्दिर निर्माण आरंभ न करें।
भाव शुद्धि- मंदिर आरंभ के समय उस दिन की बनी कुंडली के बारह भावों में रहे हुए नव ग्रहों का शुभाशुभ फल इस प्रकार जानना चाहिए-10 |लग्न में भाव से सूर्य चन्द्र मंगल बुध पहले लग्न में वज्रपात द्रव्य हानि मृत्यु आयु पर्यंत कुशलता दुसरे लग्न में हानि शत्रु नाश |बन्धन | बहु सम्पत्ति तीसरे लग्न में विलंब से | अपेक्षित विलंब से | अभीष्ट सिद्धि
सिद्धि सिद्धि सिद्धि चौथे लग्न में | मित्रों से | बुद्धि नाश मन्त्रणा | धन लाभ हानि
भेद पाँचवें लग्न में सन्तान नाश | कलह कार्य रत्न लाभ
अवरोध छठे लग्न में रोग नाश | पुष्टि लाभ ज्ञान, धन लाभ सातवें लग्न में कीर्ति नाश : | क्लेश, भ्रम विपत्ति अश्व प्राप्ति आठवें लग्न में शत्रु भय हानि रोग भय | प्रतिष्ठा वृद्धि नौवें लग्न में धर्म हानि । धातु क्षय, रोग धन नाश | अनेक भोग | दशवें लग्न में मित्रता वृद्धि | शोक रत्न लाभ | विजय, स्त्री धन
लाभ